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भारत में आईवीएफ ट्रीटमेंट से गर्भधारण
भारत में आईवीएफ गर्भधारण से जुड़ी जानकारी। यहाँ जानें, आईवीएफ उपचार से जुड़े फायदे, जोखिम, सावधानियां, डाइट टिप्स, योग व व्यायाम टिप्स आदि।
प्रक्रिया का प्रकार : गर्भधारण के लिए फर्टिलिटी उपचार
फुल फॉर्म : In Vitro Fertilization (IVF)
सफलता दर : 50% - 70%
सर्जरी : मामूली सर्जिकल प्रक्रिया (आधे दिन का समय)
उपचार की औसत लागत : ₹40,000
मेडिकल लोन : Zealthy द्वारा 0% इंटरेस्ट ईएमआई लोन
उपचार के अन्य विकल्प : IUI
भारत में आईवीएफ के बारे में अधिक जानें
आईवीएफ ट्रीटमेंट यानि इन-विट्रो-फर्टिलाइज़ेशन, गर्भधारण की एक आर्टिफिशयल (artificial) सहायक प्रजनन प्रक्रिया है। आईवीएफ प्रक्रिया एक प्रकार का फर्टिलिटी ट्रीटमेंट है।
जिन दम्पत्तियों को प्राकृतिक तरीके से गर्भधारण करने में समस्या आती है उनके लिए आईवीएफ यानि टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया से गर्भधारण सबसे कारगर उपाय है। इसके अलावा ये सिंगल मदर, सिंगल फ़ादर या समलैंगिक जोड़ों (जिन्हें बच्चे की चाह है) के लिए भी सहायक है।
आईवीएफ उपचार के दौरान परिपक्व अंडे (एग), ओवरी से एकत्र किए जाते हैं। इसके बाद प्रयोगशाला में फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया के लिए अंडे और शुक्राणु (स्पर्म) को एक साथ रख दिया जाता है।
फिर फर्टिलाइज्ड अंडे यानि भ्रूण (embryo) को गर्भाशय में गर्भधारण के लिए ट्रांसप्लांट किया जाता है। आईवीएफ के उपचार के दौरान प्रक्रिया का चक्र पूरा होने में तीन सप्ताह लगते हैं। कुछ मामलों में आईवीएफ के एक चक्र में अधिक समय भी लग सकता है।
आईवीएफ उपचार असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (assisted reproductive technology-ART) का सबसे प्रभावी रूप है। आईवीएफ तकनीक की मदद से कपल अपने ख़ुद के एग और स्पर्म के जरिये बच्चे को जन्म दे सकते हैं।
इसके अलावा आईवीएफ की प्रक्रिया में डोनर के एग, स्पर्म या एम्ब्र्यो की मदद से भी गर्भधारण किया जा सकता है। कुछ मामलों में, एक गर्भावधि वाहक यानि सरोगेट मदर (surrogate mother) भी आईवीएफ उपचार में सहायक होती है।
आईवीएफ ट्रीटमेंट की जरूरत उन कपल्स को होती है जो बहुत प्रयासों के बाद भी सामान्य तरीके से संतान को जन्म नहीं दे पा रहे हों। इसके साथ-साथ जब सामान्य उपचार कारगर ना हो तब आईवीएफ ट्रीटमेंट लेने की सलाह दी जाती है। आईवीएफ उपचार की जरूरत कई परिस्थितियों में पड़ती है।
1. फैलोपियन ट्यूब डैमेज या ब्लॉकेज (Fallopian tube damage or blockage)
फैलोपियन ट्यूब डैमेज या ब्लॉकेज होने के कारण अंडे का फर्टिलाइज होना या भ्रूण का गर्भाशय में सर्वाइव (survive) करना मुश्किल हो जाता है। जिसके कारण गर्भधारण संभव नहीं हो पाता है और ऐसी परिस्थिति में आईवीएफ उपचार की जरूरत पड़ती है।
2. ओवुलेशन विकार (Ovulation disorders)
अगर एक महिला का ओव्यूलेशन समय पर नहीं होता है या फिर अस्थिर रहता है तो अंडे की संख्या में कमी आ जाती है।
ओवुलेशन विकार में शामिल है - एनोव्यूलेशन (anovulation) और पॉलीसिस्टिक ओवरियन सिंड्रोम (polycystic ovarian syndrome) आदि!
इन परिस्थितियों में ओव्यूलेशन प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है और प्रेग्नेंट होना मुश्किल हो जाता है, ऐसे में आईवीएफ उपचार काफी मददगार साबित होता है।
3. एंडोमेट्रियोसिस (Endometriosis)
एंडोमेट्रियोसिस एक मेडिकल कंडीशन है जब यूटेरस की लाइनिंग जिसे एंडोमेट्रियम कहा जाता है, असामान्य तरीके से दूसरे अंगों की तरफ बढ़ने लगती है जैसे फैलोपियन ट्यूब्स (fallopian tubes), ओवरी, पेलविस आदि।
एंडोमेट्रियोसिस के कारण गर्भधारण में बाधा आती है, ऐसी परिस्थिति में बांझपन के उपचार के लिए आईवीएफ की तकनीक का सहारा लेना मददगार हो सकता है।
4. गर्भाशय फाइब्रॉयड (Uterine fibroids)
यूटेरियन फाइब्रॉयड, 30 से 40 की उम्र में महिलाओं में उत्पन्न होने वाली ऐसी स्थिति है जब उनका गर्भाशय असामान्य रूप से बढ़ने लगता है।
आमतौर पर इस स्थिति में कैंसर नहीं होता है, मगर फाइब्रॉयड, निषेचित अंडे (fertilized egg) के आरोपण में हस्तक्षेप कर सकता है, जिससे इंफर्टिलिटी की समस्या होती है।
इस कारण से बांझपन का सामना कर रहीं महिलाओं के लिए आईवीएफ एक बेहतर विकल्प है।
5. प्रीवियस ट्युबल स्टरलाइजेशन या निष्कासन (Previous tubal sterilization or removal)
ट्यूबल लिगेशन (tubal ligation) या महिला नसबंदी, एक प्रकार की नसबंदी है, जिसमें गर्भधारण की प्रक्रिया को रोकने के लिए फैलोपियन ट्यूब को काट दिया जाता है या अवरुद्ध कर दिया जाता है।
ऐसी स्थिति में गर्भधारण के लिए आपके पास आईवीएफ ट्यूबल लिगेशन रिवर्सल का विकल्प होता है या आप आईवीएफ का सहारा ले सकती हैं।
6. खराब शुक्राणु उत्पादन या कार्य (Impaired sperm production or function)
बिलो एवरेज स्पर्म कंसन्ट्रेशन (Below-average sperm concentration), शुक्राणु की संख्या कम होना, शुक्राणु की खराब गतिशीलता (weak movement of sperm) या शुक्राणु के आकार व आकृति में विकार शुक्राणु और अंडे के फर्टिलाइज़ेशन को मुश्किल बना सकता है।
इसके कारण बांझपन की समस्या उत्पन्न हो सकती है, ऐसे में आईवीएफ का विकल्प मददगार है।
7. अस्पष्टीकृत इंफर्टिलिटी (Unexplained infertility)
अनएक्सप्लेंड इंफर्टिलिटी यानि बांझपन के कारण का पता नहीं चल पाना। इस स्थिति में कपल आईवीएफ उपचार का विकल्प चुन सकते हैं।
8. जेनेटिक डिसीज/प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक स्क्रीनिंग या डायग्नोसिस - पीजीएस या पीजीडी (Genetic disease / preimplantation genetic screening or diagnosis - PGS or PGD)
यदि आपको या आपके साथी के कारण आपके बच्चे के आनुवंशिक विकार से गुजरने का ख़तरा है तो आप प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग (preimplantation genetic testing) के उम्मीदवार हो सकते हैं। इस प्रक्रिया में आईवीएफ शामिल होता है।
अंडे के फर्टिलाइज्ड होने के बाद उसमें कुछ आनुवंशिक समस्याओं की जांच की जाती है। जिस भ्रूण में आनुवंशिक समस्याएँ नहीं होती, उन्हें गर्भाशय में स्थानांतरित किया जा सकता है। हालांकि, इससे सभी आनुवंशिक समस्याओं को नहीं खोजा जा सकता है।
9. कैंसर या अन्य स्वास्थ्य स्थितियों के लिए प्रजनन संरक्षण (Fertility preservation for cancer or other health conditions)
यदि आप कैंसर उपचार शुरू करने वाले हैं - जैसे कि रेडिएशन या कीमोथेरेपी - जो आपकी प्रजनन क्षमता को नुकसान पहुंचा सकती है, तो प्रजनन संरक्षण के लिए आईवीएफ एक विकल्प हो सकता है। महिलाओं के गर्भाश्या से हार्वेस्ट अंडों को फ्रीज किया जाता है। इन फ्रीज्ड एग्स को भविष्य में फर्टिलाइजेशन के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
10. सरोगेसी (Surrogacy)
जिन महिलाओं के पास एक फंक्शनल यूट्रेस (functional uterus) नहीं होता है यानि यूट्रेस अपना काम नहीं सही तरह से नहीं कर पाता है या जिन्हें गर्भावस्था में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं।
कहने का मतलब यह है कि वह माँ नहीं बन सकती हैं, वह किसी अन्य महिला को आईवीएफ के लिए चुन सकती हैं। इसे "किराए की कोख" या सरोगेसी के नाम से भी जाना जाता है।
इस मामले में महिला के अंडों को शुक्राणु के साथ निषेचित किया जाता है, लेकिन परिणामस्वरूप भ्रूण को गर्भकालीन वाहक यानि सेरोगेट मदर के गर्भाशय में रखा जाता है।
आईवीएफ ट्रीटमेंट से पहले महिला और पुरुष दोनों की अलग-अलग जांच की जाती है और कई तरह के टेस्ट करवाए जाते हैं।
बांझपन का निदान करने के लिए किए गए परीक्षणों को आमतौर पर प्री-स्क्रीनिंग परीक्षणों के रूप में जाना जाता है।
आपकी शारीरिक समस्या के बारे में पता चल जाने के बाद उसके आधार पर उपचार की योजना बनाई जाती है।
अनुशंसित दृष्टिकोण (recommended approach) आपकी उम्र, डायग्नोसिस, बांझपन की अवधि, पिछले उपचार और आपकी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं पर निर्भर करेगा।
वैसे तो सभी मरीज़ों को सभी डायग्नोस्टिक टेस्ट (diagnostic test) की आवश्यकता नहीं होती है, मगर एक आइडियल ट्रीटमेंट प्लान को निर्धारित करने और गर्भावस्था के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने में, एक संपूर्ण नैदानिक मूल्यांकन (thorough diagnostic evaluation) महत्वपूर्ण होता है।
आईवीएफ की प्रक्रिया के बारे में सोचने से पहले डॉक्टर की ओर से महिला को कई तरह के टेस्ट करने की सलाह दी जाती है। ये टेस्ट इसलिए किये जाते हैं ताकि प्रक्रिया के दौरान किसी भी तरह की समस्या न हो और ट्रीटमेंट सफल हो सके।
1. सामान्य स्क्रीनिंग टेस्ट - संक्रामक, आनुवंशिक (General Screening Tests - Infectious, Genetic)
आप और आपके साथी दोनों की, संक्रामक रोग स्क्रीनिंग की जाती है। इनमें शामिल है, क्लैमाइडिया एंटीबॉडी (chlamydia antibody), गोनोरिया (gonorrhea), हेपेटाइटिस बी (hepatitis B), हेपेटाइटिस सी (hepatitis C), सिफलिस सीरोलॉजी (syphilis serology), एचआईवी (HIV) टेस्ट आदि।
इसके अंतर्गत कम्प्लीट ब्लड काउंट (complete blood count), ब्लड टाइप और आरएच फैक्टर (blood type & Rh factor), रूबेला टाइटर (rubella titer) टेस्ट किए जाते हैं। ये टेस्ट गर्भावस्था के दौरान भ्रूण को गंभीर जटिलताओं और एनीमिया और अन्य संभावित विकारों से बचाने के लिए किए जाते हैं।
प्रोलैक्टिन (prolactin), टीएसएच (TSH), फ्री थायरोक्सिन (free thyroxine) हार्मोनल परीक्षण गर्भावस्था को प्रभावित करने वाले असामान्यताओं का पता लगाते हैं।
टे सैक्स (tay sach’s), सिस्टिक फाइब्रोसिस (cystic fibrosis), सिकल सेल (sickle cell) के लिए टेस्ट किए जाते हैं। अगर आपका मेडिकल हिस्ट्री के अनुसार आपको आनुवंशिक (genetic), ऑटो इम्यून डिजीज (autoimmune disease) या मेडिकल डिजीज (medical disease) का ख़तरा हो सकता है, तो साइकिल शुरू करने से पहले अन्य टेस्ट कराने की भी सलाह दी जा सकती है।
ये टेस्ट सर्वाइकल कैंसर, सर्विक्स से जुड़ी अन्य समस्याओं या यौन संचारित रोगों (sexually transmitted diseases) का पता लगा सकता है। इनमें से कोई भी समस्या आपके गर्भवती होने में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
2. ओवेरियन फंक्शन और ओवरयिन रिजर्व टेस्टिंग (Ovarian Reserve Screening)
लगभग 30-35 % महिला से संबंधित बाँझपन ओवेरियन डिसॉडर के कारण होता है। ऐसे में टेस्ट का उद्देश्य होता है ,हमें यह जानकारी देना कि आप ओवुलेट कर रहे हैं या नहीं।
अल्ट्रासाउंड, पीरियड के साइकिल के दूसरे, तीसरे या चौथे दिन किया जाता है। इससे अंडाशय (ovaries) के आकार, मात्रा और फॉलिकल की संख्या (मासिक धर्म चक्र के शुरुआती समय के अपरिपक्व अंडे) की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
एफएसएच (FSH), एलएच (LH) , ई2 (E2) टेस्ट किए जाते हैं। हार्मोन के स्तर जैसे कि फॉलिकल स्टिम्युलेटिंग हार्मोन, ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन और एस्ट्राडियोल को मासिक धर्म चक्र की शुरुआत में देखकर, डॉक्टर को एक महिला के "डिम्बग्रंथि रिजर्व" की जानकारी मिल मिलती है।
3. फैलोपियन ट्यूब मूल्यांकन (Fallopian Tube Evaluation)
फैलोपियन ट्यूब से जुड़े मुद्दे, महिला बांझपन की लगभग 30% समस्याओं का कारण हो सकते हैं। सामान्य समस्याएं ट्यूबल ब्लॉकेज (tubal blockage) या पिछली अनजानी पेल्विक संक्रमण (undiagnosed pelvic infection) से होने वाली स्कारिंग, पेट के संक्रमण जैसे एपेंडिसाइटिस (appendicitis), पहले हुई सर्जरी, पहले हुई एक्टोपिक प्रेगनेंसी (ectopic pregnancy) या एंडोमेट्रियोसिस (endometriosis) से संबंधित होते हैं।
हिस्टेरोसाल्पिंगोग्राफी एक एक्स-रे परीक्षण होता है, जिसमें गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब के माध्यम से डाई (dye) की एक छोटी मात्रा डालकर पता लगाया जाता है कि फॉलोपियन ट्यूब खुले हैं या फिर उनमें ब्लॉकेज है।
4. गर्भाशय का मूल्यांकन (Uterine Evaluation)
गर्भाशय को एंडोमेट्रियम (endometrium) नामक कोशिकाओं की एक विशेष परत द्वारा पंक्तिबद्ध (lined) किया जाता है, जहां भ्रूण का प्रत्यारोपण (implant) होता है और गर्भावस्था में विकसित होना शुरू होता है। भ्रूण के आरोपण के संभावित दोषों या बाधाओं के लिए गर्भाशय गुहा (uterine cavity) का पूरी तरह से मूल्यांकन करना महत्वपूर्ण होता है।
दोषों में हैं - यूटेरिन स्कार टिश्यू (uterine scar tissue - पिछली गर्भधारण या प्रक्रियाओं से), पोलिप्स (polyps), फाइब्रोइड्स (fibroids) और गर्भाशय में अन्य संरचनात्मक दोष (structural defects)।
आमतौर पर मेंस्ट्रुअल साइकिल शुरू होने के दूसरे, तीसरे या चौथे दिन पर पेल्विक अल्ट्रासाउंड किया जाता है। यह चिकित्सक को गर्भाशय गुहा (uterine cavity) की दिशा और लंबाई के बारे में जानकारी देता है।
हिस्टेरोसलपिंगोग्राम (एचएसजी) से गर्भाशय गुहा (uterine cavity) के बनावट से संबंधित दोषों (structural defects) की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
यूटेरस में कम मात्रा में स्टेराइल फ्लूइड डालकर यूटरिन वॉल (uterine wall) और इनर यूटरिन कैविटी (inner uterine cavity) का मूल्यांकन किया जाता है। यह परीक्षण यूटरिन वॉल और एंडोमेट्रियल कैविटी, दोनों की असामान्यताओं के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
डायग्नोस्टिक हिस्टेरोस्कोपी (Diagnostic Hysteroscopy) परीक्षण आईवीएफ जैसे प्रजनन उपचार से गुज़रने वाली महिलाओं के लिए या जिन लोगों को सोनोहिस्ट्रोग्राफी (sonohysterography) पर संदेह है, उनके लिए सिफारिश की जाती है।
ये टेस्ट केवल कुछ परिस्थितियों में एंडोमेट्रियम के विकास में समस्याओं का निदान करने के लिए किया जाता है, जिसे ल्यूटल फेज़ डिफेक्ट (luteal phase defect) कहा जाता है, या एंडोमेट्रियल लाइनिंग (endometrial lining) के संभावित संक्रमण का पता लगाने के लिए किया जाता है।
बांझपन सिर्फ महिलाओं में नहीं होता; पुरुषों में भी बांझपन की समस्या हो सकती है। नि:संतानता का सामना कर रहे पुरुषों के लिए इंफर्टिलिटी टेस्ट ज़रूरी होते है। इनफर्टिलिटी के मामलों में 40% मामले मुख्य तौर पर पुरुष से संबंधित इनफर्टिलिटी के कारण होते हैं। पुरुषों के निजी अंगों की जांच सहित एक सामान्य शारीरिक परीक्षा हो सकती है।
साथ ही कुछ निम्न विशिष्ट प्रजनन परीक्षण किए जाते हैं :
यह परीक्षण एक अनुभवी एंड्रोलॉजिस्ट द्वारा किया जाता है, जो शुक्राणु का सूक्ष्म (microscopic) मूल्यांकन करते हैं। सीमेन एनालिसिस से प्राप्त जानकारी जैसे कि शुक्राणुओं की संख्या और शुक्राणु का आकार, यह निर्धारित करने में मदद करता है कि अंडे को निषेचित करने के लिए, शुक्राणु की सुविधा के लिए किस तकनीक का उपयोग किया जाए।
इन विकल्पों में समय पर संभोग (timed intercourse), अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान (intrauterine insemination), पारंपरिक आईवीएफ (conventional IVF) या आईसीएसआई (intracytoplasmic sperm injection) शामिल हैं।
ये परीक्षण ब्लड और सीमेन दोनों में असामान्य कणों (abnormal particles) का पता लगाता है, जिन्हें एंटीबॉडीज़ (antibodies) कहा जाता है, जो अन्यथा सामान्य शुक्राणु को हानि पंहुचा सकते हैं या नष्ट कर सकते हैं।
ये एक क्रोमोसोमल एनालिसिस होता है, जो संभावित महत्वपूर्ण असामान्यताओं (abnormalities) की पहचान कर सकता है, जिससे निषेचन (fertilization) और गर्भावस्था (pregnancy) में बाधा आती है। बाद के उपचार के विकल्पों में आईवीएफ के साथ प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस (Pre-implantation Genetic Diagnosis) या डोनर स्पर्म का उपयोग शामिल हो सकता है।
जब शुक्राणु की एकाग्रता (concentrations) बहुत कम होती है, तो इसका कारण आनुवंशिक हो सकता है। रक्त परीक्षण से पता चल सकता है कि वाई क्रोमोसोम (Y chromosome) में परिवर्तन हैं जो कि एक आनुवंशिक असामान्यता का संकेत हो सकता है, यह नेचुरल प्रेगनेंसी रेट को कम करता है।
आईवीएफ के साथ, आईसीएसआई की उन्नत प्रजनन तकनीक का उपयोग करके, निषेचन प्राप्त किया जा सकता है। हालांकि ये असमानताएं किसी पुरुष के संतान को हो सकती है। ऐसे में विभिन्न जन्मजात या फैमिली हिस्ट्री में मिले सिंड्रोम जैसे सिस्टिक फाइब्रोसिस का पता लगाने के लिए आनुवंशिक परीक्षण का आदेश दिया जा सकता है।
ये एक नई परीक्षण प्रक्रिया है, जो लगातार गर्भावस्था हानि या अप्रत्याशित, अस्पष्टीकृत और बार-बार असफल आईवीएफ चक्रों के मामलों में की जाती है। संभवतः विफल निषेचन (failed fertilization) पुरुष कारक बांझपन (male factor infertility) से संबंधित होती है। यह परीक्षण शुक्राणु में डीएनए फ्रेगमेंटेशन के दोषों का विश्लेषण करता है।
अध्ययनों से पता चला है कि इस परीक्षण में महत्वपूर्ण असामान्यताएं प्राकृतिक गर्भाधान (natural conception) की संभावना को कम करती हैं। हालांकि अच्छी बात ये है कि आईसीएसआई के साथ आईवीएफ जैसी उन्नत प्रक्रिया गर्भावस्था को प्राप्त करने में मदद कर सकती है। यह परीक्षण आमतौर पर लगातार गर्भावस्था हानि से पीड़ित रोगियों के लिए किया जाता है।
इस परीक्षण में सुई के साथ अंडकोष से नमूने को निकालना शामिल है। टेस्टिकुलर बायोप्सी के परिणाम बताते हैं कि शुक्राणु उत्पादन सामान्य है तो आपकी स्पर्म ट्रांसपोर्ट (sperm transport) की समस्या ब्लॉकेज या किसी अन्य कारण से हो सकती है।
कुछ स्थितियों में मस्तिष्क एमआरआई और वासोग्राफी (vasography) की जाती है।
कुछ दुर्लभ मामलों में डीएनए की असामान्यताओं की जांच के लिए वीर्य के नमूने का मूल्यांकन किया जाता है।
सभी मरीज़ों को हर नैदानिक परीक्षण की आवश्यकता नहीं होती है, आइडियल ट्रीटमेंट प्लान का निर्धारण करने में एक संपूर्ण नैदानिक मूल्यांकन (thorough diagnostic evaluation) महत्वपूर्ण होता है, और इस प्रकार गर्भावस्था का अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करना है।
आईवीएफ की प्रक्रिया पाँच चरणों में विभाजित है। आईवीएफ तकनीक की पूरी प्रक्रिया में ओवेरियन स्टिमुलेशन (ovarian stimulation), एग रिट्रीवल (egg retrieval), स्पर्म रिट्रीवल (sperm retrieval), निषेचन (fertilization) और भ्रूण स्थानांतरण (embryo transfer) शामिल है।
आईवीएफ उपचार के एक चक्र में लगभग दो से तीन सप्ताह लग सकते हैं। इसके साथ ही गर्भधारण के लिए एक से अधिक चक्र की आवश्यकता हो सकती है।
यदि आप आईवीएफ के दौरान खुद के अंडे का उपयोग कर रहीं हैं, तो आईवीएफ के एक चक्र की शुरुआत में कई अंडाणुओं को उत्पन्न करने के लिए आपके अंडाशय को उत्तेजित किया जाएगा। अंडाशय को उत्तेजित करने के लिए सिंथेटिक हार्मोन के साथ उपचार शुरू किया जाएगा। ओव्यूलेशन इंडक्शन में कई अंडों की जरूरत होती है क्योंकि कुछ अंडे उपचार के बाद सामान्य रूप से फर्टिलाइज्ड या विकसित नहीं होते।
ओवरियन स्टिमुलेशन में इंजेक्शन युक्त दवा, फॉलिकल स्टिम्युलेटिंग हॉर्मोन -एफएसएच (follicle-stimulating hormone - FSH), ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन -एलएच (luteinizing hormone - LH) या दोनों के संयोजन वाली दवा दी जा सकती हैं।
ये दवाएं एक समय में एक से अधिक अंडे का उत्पादन करने के लिए अंडाशय को उत्तेजित करती हैं। आईवीएफ के इस पूरे चक्र में 1-2 इंजेक्शन या चक्र के प्रतिदिन 1-2 इंजेक्शन दिये जा सकते हैं।
आम तौर पर 8-14 दिनों के बाद जब फॉलिकल्स (follicles) एग रिट्रीवल के लिए तैयार होते हैं, तब आपको ह्यूमन कोरिओनिक गोनाडोट्रोपिन - एचसीजी (human chorionic gonadotropin - HCG) हार्मोन लेना होगा, ये अंडे को परिपक्व करने में सहायक है। हालांकि, अंडे को परिपक्व होने में मदद के लिए अन्य दवाएं भी दिये जा सकते हैं।
ये दवाएं आपके शरीर से विकासशील अंडों को जल्द ही रिलीज करने से रोकती हैं।
अंडे की प्राप्ति के दिन या भ्रूण स्थानांतरण के समय आपके डॉक्टर गर्भाशय की लाइनिंग को अधिक ग्रहणशील बनाने के लिए प्रोजेस्टेरोन की खुराक लेने की सलाह दे सकते हैं।
आपके डॉक्टर आपके साथ बातचीत करने के बाद यह निर्धारित करेंगे कि उन्हें कौन सी दवाओं का उपयोग कब करना है। आमतौर पर अंडे प्राप्ति के लिए तैयार होने से पहले आपको एक से दो सप्ताह (8-14 दिन) ओवरियन स्टिम्युलेशन (ovarian stimulation) की आवश्यकता होगी। अंडे कब संग्रह के लिए तैयार हैं, यह निर्धारित करने के लिए आपके डॉक्टर जांच करेंगे।
आपके ओवरियन का एग्जामिनेशन, जिसमें फॉलिकल्स (follicles) के विकास को मॉनिटर किया जाएगा।
ओवरियन स्टिम्युलेशन (ovarian stimulation) दवाओं पर, आपकी प्रतिक्रिया को मापने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाएगा। आमतौर पर फॉलिकल्स (follicles) का विकास होने पर एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ने लगता है और प्रोजेस्टेरोन का स्तर ओव्यूलेशन के बाद तक कम रहता है।
कभी-कभी आईवीएफ चक्रों (IVF cycles) को कुछ कारणवश, अंडे की प्राप्ति (egg retrieval) से पहले रद्द करना पड़ता है।
यदि आपके चक्र रद्द हो जाते हैं तो आपके डॉक्टर भविष्य के आईवीएफ चक्रों के दौरान बेहतर प्रतिक्रिया को बढ़ावा देने के लिए दवाओं या उनकी खुराक को बदलने की सिफारिश कर सकते हैं या एग डोनर की सलाह भी दे सकते हैं।
अंडा प्राप्ति या एग पिकअप के लिए अस्पताल में लगभग एक दिन का समय लगता है। इस प्रक्रिया में अंडों को आपके अंडकोश से एकत्र किया जाता है। यह आमतौर पर आख़िरी इंजेक्शन के बाद और ओव्यूलेशन के पहले 34 - 36 घंटे में किया जाता है।
आईवीएफ ट्रीटमेंट की प्रक्रिया में स्पर्म रिट्रीवल फर्टिलाइजेशन के लिए पुरुष के शुक्राणु की प्राप्ति करना है। प्राकृतिक तरीके के अलावा अन्य विधियां भी हैं जैसे कभी-कभी टेस्टिकुलर एस्पिरेशन (testicular aspiration) में सुई या सर्जिकल प्रक्रिया का उपयोग टेस्किल्स (testicle) से सीधे शुक्राणु निकालने के लिए किया जाता है। इसके अलावा डोनर स्पर्म का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
प्रयोगशाला में स्पर्म को, सीमन फ्लूड (semen fluid) से अलग किया जाता है। शुक्राणु की गुणवत्ता के 4 विभिन्न स्तरों के आधार पर बांटा जाता है।
स्पर्म की गति को धीमा करने के लिए एक विशेष मिश्रण में धोया जाता है ताकि वैज्ञानिक माइक्रोस्कोप की सहायता से सबसे अच्छे स्पर्म का चयन कर सकें।
एक पूर्ण, स्वस्थ स्पर्म बहुत मोटा या पतला नहीं होता और ना ही एक पूंछ के साथ बहुत लंबा या बहुत छोटा होता है। इस प्रक्रिया में सबसे अच्छे शुक्राणु का चयन किया जाता है।
फ़र्टिलिटी स्पेशलिस्ट जिन अंडों को प्राप्त कर चुके होते हैं वे अंडे अंडाशय के फॉलिकल्स (follicles) से तरल पदार्थ में मौजूद होते हैं।
वैज्ञानिक तरल पदार्थ में अंडे खोजने के लिए शक्तिशाली सूक्ष्मदर्शी का उपयोग करते हैं, ताकि उनके उपयोग से फर्टिलाइज़ेशन हो सके। यह महत्वपूर्ण है कि अंडे जल्द से जल्द फर्टिलाइज्ड हों।
निषेचन के प्रयास के लिए दो सामान्य तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है :
पारंपरिक गर्भाधान के दौरान, स्वस्थ शुक्राणु और परिपक्व अंडे मिश्रित होते हैं और एक रात के अंदर इन्हें इंकुबेट (incubated) किया जाता है।
आईसीएसआई प्रकिया में, एक स्वस्थ शुक्राणु को प्रत्येक परिपक्व अंडे में सीधे इंजेक्ट किया जाता है। आईसीएसआई का उपयोग अक्सर तब किया जाता है, जब वीर्य की गुणवत्ता या संख्या में विकार हो या पहले आईवीएफ चक्र के दौरान निषेचन के प्रयास विफल हो गए हों।
यदि शुक्राणु और अंडे फर्टिलाइज हो जाते हैं तो यह एक भ्रूण यानि एम्ब्र्यो बन जाता है। वैज्ञानिक अमीनो एसिड के मिश्रण का उपयोग कर के, भ्रूण को एक विशेष इनक्यूबेटर (incubator) में डाल देते हैं। इस इंकुबेटर में भ्रूण की वृद्धि और विकास के लिए स्थितियाँ परिपूर्ण होती हैं।
एग रिट्रीवल के एक दिन बाद (भ्रूण के विकास का पहला दिन), एम्ब्र्योलॉजिस्ट फर्टिलाइजेशन का मूल्यांकन शुरू करते हैं और सामान्य रूप से फर्टिलाइज्ड एग को अलग कर देते हैं।
भ्रूण विकास के दूसरे दिन, सामान्य रूप से डिवाइड हुए भ्रूण में 2 - 4 कोशिकाएं होनी चाहिए और तीसरे दिन को 6-8 कोशिकाएँ होनी चाहिए जिसे क्लीवेज स्टेज कहा जाता है।
भ्रूण विकास के तीसरे दिन, भ्रूणविज्ञानी एम्ब्र्यो का आकलन करते हैं, उन्हें कई कारकों के आधार पर ग्रेड देते हैं।
ऐसे भ्रूण के आरोपण की अधिक संभावना होती है, जिनकी क्वालिटी बेहतर हो और जो सामान्य रूप से विभाजित हो रहे होते हैं।
इसलिए अच्छी गुणवत्ता वाले और सामान्य रूप से विभाजित होने वाले भ्रूण को ट्रांसफर के लिए चुना जाता है।
ट्रांसफर किए जाने वाले भ्रूण की संख्या, भ्रूण की गुणवत्ता, महिला की आयु और ट्रांसफर के दिन (तीसरा दिन बनाम पाँचवाँ दिन) पर निर्भर करती है।
तीसरा दिन बनाम पांचवां दिन
पहले, एग रिट्रीवल, फर्टिलाइजेशन और शुरुआती एम्ब्र्यो सेल डिविज़न के बाद भ्रूण के विकास के तीसरे दिन ही, भ्रूण को गर्भाशय में ट्रांसफर कर दिया जाता था।
हालांकि. वैज्ञानिक प्रगति और एडवांस्ड कल्चरल मीडिया (advanced cultural media) की उपलब्धता के कारण, अब प्रयोगशाला में भ्रूण ब्लास्टोसिस्ट चरण (80-100 कोशिकाओं के साथ एम्ब्र्यो के विकास का 5 या 6 दिन) तक विकास कर सकते हैं।
एक भ्रूण के ब्लास्टोसिस्ट चरण तक बढ़ पाने की क्षमता, भ्रूण के भीतर की कोशिकाओं के एडवांस्ड डेवलपमेंट से आता है।
विकास के पांच दिनों के बाद, एक सामान्य स्वस्थ भ्रूण की कोशिकाएँ कई गुणा विभाजित हो जाती हैं और अपने कार्यों को अपनाने लगती हैं।
इस स्टेज में जो भ्रूण जीवित रहते हैं और विकास के इस चरण में बढ़ते हैं, उन्हें ब्लास्टोसिस्ट कहा जाता है। इस स्टेज के जीवित भ्रूण मजबूत और स्वस्थ होते हैं, जिनके आरोपण की संभावना अधिक होती है।
इस तरह से एम्ब्र्योलोजिस्ट के लिए भ्रूण के विकास के तीसरे दिन कई एम्ब्र्यो चुनने से बेहतर एक या दो ब्लास्टोसिस्ट चुनना होता है जिससे एक से अधिक प्रेगनेंसी की संभावना कम हो जाती है।
हालांकि, सभी एग फर्टिलाइज नहीं हो पाते हैं और एम्ब्र्यो स्टेज तक नहीं पहुँच पाते हैं। एग ठीक से मैच्योर नहीं हो पाते हैं या स्पर्म की क्षमता पर्याप्त नहीं होती है।
निषेचन के लगभग पांच से छह दिन बाद, एक भ्रूण अपने बाहरी परत यानि झिल्ली (zona pellucida) से हैच (hatches) करता है, जिससे उसे गर्भाशय के लाइनिंग में प्रत्यारोपित करने की अनुमति मिलती है।
यदि आप अधिक उम्र की महिला हैं या यदि आपके कई आईवीएफ प्रयास विफल हैं तो आपके डॉक्टर असिस्टेड हैचिंग की सिफारिश कर सकते हैं – असिस्टेड ज़ोना हैचिंग इन विट्रो गर्भाधान की एक कृत्रिम गर्भाधान तकनीक है।
इस तकनीक के तहत एम्ब्र्यो हैच और इंप्लांट के लिए, एम्ब्र्यो ट्रांसफर के ठीक पहले जोना पेलुसिडा में छेद किया जाता है। फ़्रोजेन एग और एम्ब्र्यो के कारण जोना पेलुसिडा सख़्त हो सकता है, जिस स्थिति में अस्सीस्टेड हैचिंग तकनीक कारगर हैं।
जब तक कि भ्रूण एक चरण तक नहीं पहुंचते हैं, भ्रूण को इनक्यूबेटर (incubator) में विकसित करने की अनुमति दी जाती है, जहां एक छोटा सा नमूना निकाला जा सकता है और विकास के पांच से छह दिनों के बाद विशिष्ट आनुवंशिक रोगों या गुणसूत्रों (chromosomes) की सही संख्या के लिए परीक्षण किया जा सकता है।
भ्रूण जिसमें प्रभावित जीन या गुणसूत्र नहीं होते हैं, उन्हें गर्भाशय में स्थानांतरित किया जा सकता है। प्रीइमप्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग से माता-पिता के आनुवंशिक समस्या का प्रभाव शिशु पर पड़ेगा या नहीं, इसकी संभावना को कम किया जा सकता है, जबकि यह जोखिम को खत्म नहीं कर सकता है। इस समय भी प्रसव पूर्व परीक्षण की सिफारिश की जा सकती है।
यदि आप गर्भवती हैं, तो आपके डॉक्टर आपको प्रसवपूर्व देखभाल के लिए किसी प्रसूति विशेषज्ञ या अन्य गर्भावस्था विशेषज्ञ के पास भेजेंगे।
भ्रूण ट्रांसफर के लगभग दो सप्ताह बाद, महिला की ब्लड टेस्ट के जरिए हार्मोन एचसीजी के स्तर को मापा जाता है। यदि ये स्तर हाई है तो गर्भावस्था सुरक्षित है।
यदि एक से अधिक भ्रूण गर्भाशय में स्थानांतरित होते हैं, तो आईवीएफ एक से अधिक बच्चों के जन्म का कारण बन सकता है।
समय से पहले प्रसव और जन्म के समय बच्चे का वजन होने का ख़तरा बढ़ सकता है।
ओवुलेशन के लिए, आईवीएफ के दौरान दिए जाने वाले फर्टिलिटी ड्रग्स जैसे ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपीन यानि एचसीजी (human chorionic gonadotropin -HCG), से ओवरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम (ovarian hyperstimulation syndrome) का ख़तरा हो सकता है जिसमें आपके अंडाशय सूजन और दर्द हो सकता है।
आईवीएफ उपचार कराने वाली महिलाओं में गर्भपात की दर लगभग 15% से 25% तक होती है। यह दर सामान्य रूप से गर्भधारण करने वाली महिलाओं के गर्भपात दर के समान है।
अंडा प्राप्ति प्रक्रिया में जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। इस दौरान रक्तस्राव, संक्रमण, आंत्र (आंत), मूत्राशय या रक्त वाहिका को नुकसान पहुंच सकता है।
आईवीएफ उपचार कराने वाली लगभग 2% से 5% महिलाओं में गर्भाशय के बाहर फर्टिलाइज्ड अंडा प्रत्यारोपित होने का जोखिम रहता है, नतीजन गर्भपात हो सकता है।
यदि आईवीएफ तकनीक इस्तेमाल करने वाली महिला की उम्र अधिक है तो बच्चों में जन्म दोष होने का जोखिम हो सकता है।
आईवीएफ के बाद महिलाओं में स्तन कैंसर, एंडोमेट्रियल और ओवरियन कैंसर होने का जोखिम हो सकता है।
आईवीएफ उपचार भावनात्मक, आर्थिक और शारीरिक रूप से प्रभाव डालता है। ऐसे में महिलाओं को तनाव बढ़ने का ख़तरा रहता है।
आईवीएफ सफलता दर कई कारकों पर निर्भर करती है, जिसमें इंफर्टिलिटी का कारण, प्रक्रिया की जगह और उम्र शामिल है। आंकड़ों के मुताबिक, उम्र कोई भी हो लेकिन आईवीएफ के 30% जीवित जन्म दर को दुनिया भर में अच्छे मानक के रूप में देखा जाता है।
इंट्रा यूटेरिन इंसेमीनेशन (Intra Uterine Insemination) और इंट्रा विट्रो फर्टिलाइजेशन (Intra vitro fertilization) प्रजनन की दो ऐसी तकनीक हैं जिनकी मदद से गर्भधारण किया जा सकता है। इंट्रा यूटेरिन इंसेमीनेशन तकनीक में महिला के गर्भ में आर्टिफिशिल (artificial) तरीके से स्वस्थ शुक्राणुओं को इंजेक्ट किया जाता है। वहीं इन विट्रो फर्टिलाइजेशन में महिला के अंडों को गर्भाश्य से निकालकर ट्यूब में स्टोर कर उनका शुक्राणुओं से संयोजन करवाया जाता है और बाद में भ्रूण विकसित होने पर गर्भाश्य में वापस भ्रूण ट्रांसफर कर दिया जाता है।
इंट्रा यूटेरिन इंसेमीनेशन की प्रक्रिया प्रजनन की दूसरी प्रक्रिया इन विट्रो फर्टिलाइजेशन से आसान है, कम समय लेती है और इसमें कम परेशानियां भी होती हैं। इन विट्रो फर्टिलाइजेशन के दौरान महिलाओं को कई तरह की सेहत संबंधी जोखिम भी होते हैं जबकि इंट्रा यूटेरिन इंसेमीनेशन में ऐसा कुछ नहीं है।
आईवीएफ ट्रीटमेंट काफी महँगा होता है जिसके कारण कई बार महिलाएं इससे वंचित रह जाती हैं लेकिन अब भारत में आईवीएफ इलाज करवाने में होने वाले खर्च को आसानी से करने के लिए लोन की व्यवस्था उपलब्ध है। भारत में अभी के समय में आईवीएफ ट्रीटमेंट के लिए पांच लाख तक का लोन लिया जा सकता है।
Zealthy आईवीएफ ट्रीटमेंट के लिए 0% ब्याज दर पर लोन मुहैया करवाने में आपकी मदद कर सकता है। अधिक जानकारी के लिए आप हमें संपर्क कर सकते हैं।
भारत में फ़र्टिलिटी ट्रीटमेंट पैकेज की लागत प्रसवपूर्व देखभाल के दौरान ली जाने वाली सर्विस पर निर्भर करती हैं।
बांझपन इलाज़ के पैकेज इस बात पर निर्भर करती है कि आपको डॉक्टर के पास कितनी बार विजिट करना है, आपकी उम्र क्या है, आप फर्टिलिटी का कौन सा ट्रीटमेंट करवा रहे हैं, आपको कोई जेनेटिक बीमारी या कोई अन्य गंभीर समस्या है और उसका इलाज चल रहा है तो फर्टिलिटी के इलाज में उसी के मुताबिक आपको सेवाएं दी जाती हैं।
आमतौर पर आईवीएफ (IVF) से गर्भधारण के लिए उपलब्ध पैकेजेस में इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ), इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन (आईसीएसआई), इंट्रा-साइटोप्लाज्मिक मॉर्फोलॉजिकल रूप से चयनित स्पर्म इंजेक्शन (आईएमएसआई), सहायक हैचिंग, फ्रोजन एम्ब्रियो ट्रांसफर (एफईटी) पैकेज शामिल होते हैं।
टेस्ट ट्यूब बेबी पैकेज का खर्च आपकी जरूरत के मुताबिक घटता या बढ़ता है जैसे आपका पहले गर्भपात हुआ है नहीं, पहले IVF विफल तो नहीं हुआ, कौन-कौन से टेस्ट करवाने हैं और डॉक्टर की कंसल्टेशन फीस।
टेस्ट ट्यूब बेबी पैकेज के खर्च की अधिक जानकारी के लिए आप Zealthy से संपर्क कर सकते हैं। हम आपको दिलाते हैं सस्ते दरों पर बेहतरीन आईवीएफ़ पैकेज। ज्यादा जानकारी के लिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं।
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन यानि आईवीएफ (In vitro fertilization) एक प्रकार की सहायक प्रजनन तकनीक (assistive reproductive technology) है।
इस तकनीक में सबसे पहले महिला के अंडाशय (ovaries) से अंडे (egg) को बाहर निकाला जाता है और फिर उसे पुरुष के निकाले गए स्पर्म (sperm) के साथ फर्टिलाइज (fertilize) किया जाता है।
यह तकनीक बांझपन की समस्या से जूझ रहे कपल के लिए काफी कारगर है। आप इसके लिए मेडिकल लोन भी ले सकते हैं। आईवीएफ उपचार के लिए पैकेज भी उपलब्ध हैं, जिनका खर्च कई कारकों पर निर्भर करता है।
भारत में आईवीएफ उपचार की लागत 1 से 2 लाख रूपए के बीच में है। आईवीएफ (IVF) प्रक्रिया लागत जगह, दवाओं की मात्रा, आईवीएफ चक्रों की संख्या के आधार पर भिन्न हो सकता है।
टेस्ट ट्यूब बेबी (test tube baby) प्रक्रिया से गर्भधारण का खर्च हमेशा महँगा नहीं होता है। यह कई चीजों पर निर्भर करता है।
बांझपन के इलाज़ के लिए आपको मेल इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट या फिर फ़ीमेल इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट की जरूरत हो, एक बेस्ट इंफर्टिलिटी डॉक्टर की तलाश करना अपने आप में चुनौतीपूर्ण है।
इंफर्टिलिटी की समस्या से गुज़र रहे लोगों को कई कठिन मेडिकल निर्णयों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में दोस्तों, परिवार, इंटरनेट और अन्य जगहों से भी मिलने वाली जानकारी आपको कंफ्यूज कर सकती हैं।
ऐसे में ये बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है कि इंफर्टिलिटी की समस्या का सामना कर रहें लोग सबसे उपयुक्त बांझपन उपचार के डॉक्टर की तलाश करें। अगर आप आईवीएफ ट्रीटमेंट के लिए IVF गर्भावस्था स्पेशलिस्ट डॉक्टर का चयन कर रहे हैं तो आपको कई बातों का ध्यान रखना चाहिए।
ये भी देखें कि आपके आईवीएफ स्पेशलिस्ट आईवीएफ ऑनलाइन परामर्श देते हैं या नहीं।
आमतौर पर देखा गया है कि आईवीएफ गर्भावस्था के लिए बेस्ट हॉस्पिटल या क्लीनिक का चयन करने में कपल्स ऐसे क्लीनिक का चयन करते हैं जो उनके घर के आस-पास होता है, जिसका खर्च कम होता है या फिर उनके किसी जानकर ने वहां इलाज करवाया हो।
लेकिन आपको ये याद रखना होगा सभी आईवीएफ क्लीनिक समान रूप से अच्छे नहीं होते हैं। आईवीएफ गर्भावस्था के लिए बेस्ट हॉस्पिटल के चयन के दौरान कई बातों को जानना जरूरी है।
संभव हो तो वहां पहले से फर्टिलिटी का इलाज करवा रहे लोगों की राय ज़रुर लें।
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भारत में टेस्ट ट्यूब बेबी (आईवीएफ) का खर्च
भारत में टेस्ट ट्यूब बेबी (आईवीएफ) के खर्च की पूरी जानकारी व प्रभावित करने वाले कारक। IVF ट्रीटमेंट की लागत का करें आकलन और पाएं उपचार का उचित मूल्य।
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भारत में आईवीएफ उपचार व गर्भावस्था से जुड़े सवाल
क्या टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया दर्दनाक है? आईवीएफ उपचार में क्या होता है? आईवीएफ ट्रीटमेंट से गर्भधारण व आईवीएफ गर्भावस्था की पूरी प्रक्रिया से जुड़े सवाल व जवाब
आईवीएफ़ गर्भधारण के लिए की जाने एक मेडिकल और सर्जिकल प्रकिया है जिसके तहत कृत्रिम तरीके से एग, स्पर्म के साथ फर्टिलाइज होते हैं। इसके बाद फर्टिलाइज्ड एग यानि एम्ब्र्यो को महिला के गर्भाशय में डाल दिया जाता है ताकि वह विकास कर सके और शिशु का रूप ले सके।
आईवीएफ़ साइकल में उम्र सबसे महत्वपूर्ण कारक है। आईवीएफ़ प्रक्रिया से गर्भधारण की संभावना 35 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में अधिक होती है। वहीं 35 वर्ष से अधिक उम्र के बाद गर्भधारण की संभावना बेहद कम होती चली जाती है।
जहां सिंगल-एम्ब्र्यो ट्रांसफर में गर्भधारण की संभावना 28% होती है वहीं डबल-एम्ब्र्यो ट्रांसफर में गर्भधारण की संभावना 48% होती है।
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मेरा पहले गर्भपात हो गया था और पिछले दो वर्षों से मैं गर्भधारण करने की कोशिश कर रही थी। केयर टीम के द्वारा दी गई देखभाल और सहायता काफी अच्छी थी। उनकी सहायता ने हमारे परिवार को पूरा करने में मदद की।
Arpana Kumari
- आईवीएफ उपचार
Zealthy has been instrumental in my pregnancy. We have been married for five years but were not able to conceive. They understood our needs and referred us to the best doctor
Gurpreet Kaur
- आईवीएफ उपचार
हमें हमारे एक दोस्त ने Zealthy के बारे में बताया। Zealthy केयर टीम ने हमें बेहतर प्रजनन उपचार प्राप्त करने में मदद की, और मैं अब सात महीने की गर्भवती हूँ, मैं अपने बच्चे का इस दुनिया में आने का इंतजार कर रही हूँ।
Amarjeet Kaur
- आईवीएफ उपचार
The doctor was very friendly, and the care team was available 24/7 on phone and WhatsApp to clarify our queries.
Yyotirmoy Gupta
- आईवीएफ उपचार
We are forever grateful to team Zealthy for helping us conceive. We are now blessed with10-month-old twins- Aditi and Arya.
Bhargav Labhala
- आईवीएफ उपचार
Zealthy की केयर टीम की अद्भुत सेवा, देखभाल काबिले तारीफ़ है। डॉक्टर के साथ हमारी नियुक्ति की बुकिंग से पहले हमारी आवश्यकताओं को सुनने में, समझने में और उपचार के दौरान हर छोटी-छोटी समस्याओं के लिए वे हमारे साथ थे। शुक्रिया!
Avnish Choudhary
- आईवीएफ उपचार
The care team was professional, knowledgeable and most importantly friendly. The pricing was transparent from the starting so that you know what you are getting into.
Neha Gupta
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Zealthy के पास डॉक्टरों की एक अच्छी टीम है जो अच्छी तरह देखभाल करती हैं। हमें लगा जैसे हम सभी एक साथ हैं, उन्होनें उपचार के हर चरण में हमें उस चरण के बारे में समझाया और हमारा पूरा साथ दिया।
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- आईवीएफ उपचार
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Jyoti
- आईवीएफ उपचार
आर्टिकल्स
आईवीएफ सफलता दर निर्धारित करने वाले कारक
आईवीएफ की मदद लेने से पहले ये जानना आवश्यक होता है कि किन कारकों पर आईवीएफ की सफलता निर्भर करती है। ऐसा करने से प्रक्रिया को सफल बनाने की संभावना बढ़ जाती है।...और पढ़ें
Dr Sangeeta Ahuja
24 Mar, 2019
आईवीएफ प्रक्रिया में विटामिन डी का महत्व
Dr Simi Kumari , गाइनेकोलोजिस्ट
टेस्ट ट्यूब बेबी और सामान्य रूप से जन्म लेने वाले बच्चों के बीच क्या अंतर है?
Dr Neeraj Pahlajani , गाइनेकोलोजिस्ट
आईवीएफ भ्रूण स्थानांतरण के बाद गर्भावस्था के शुरुआती लक्षण
Dr Jasmeet Singh Ahluwalia , औब्सटेट्रीशियन
आईवीएफ इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट से संबंधित सामान्य मिथ और तथ्य
Dr Ashwini Kale , गाइनेकोलोजिस्ट
आईवीएफ ऐरा (ईआरए) प्रक्रिया क्या है?
Dr Renu Sharma , गाइनेकोलोजिस्ट
आईवीएफ और टेस्ट ट्यूब बेबी में क्या कोई अंतर है?
Dr Sainath Bairagi , गाइनेकोलोजिस्ट
आईवीएफ भ्रूण स्थानांतरण के बाद गर्भावस्था के शुरुआती लक्षण
Dr Jasmeet Singh Ahluwalia , औब्सटेट्रीशियन
आईवीएफ सफलता दर निर्धारित करने वाले कारक
Dr Sangeeta Ahuja , गाइनेकोलोजिस्ट
Zealthy: महिला स्वास्थ्य सलाहकार
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