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भारत में आईयूआई (IUI) उपचार से गर्भधारण
भारत में आईयूआई (IUI) गर्भधारण से जुड़ी जानकारी। यहाँ जानें, आईयूआई उपचार से जुड़े फायदे, जोखिम, सावधानियां, डाइट टिप्स, योग व व्यायाम टिप्स आदि।
प्रक्रिया का प्रकार : गर्भधारण के लिए फर्टिलिटी उपचार
फुल फॉर्म : In Vitro Fertilization (IVF)
सफलता दर : 30% - 50%
सर्जरी : मामूली सर्जिकल प्रक्रिया (आधे दिन का समय)
उपचार की औसत लागत : ₹40,000
मेडिकल लोन : Zealthy द्वारा 0% इंटरेस्ट ईएमआई लोन
उपचार के अन्य विकल्प : IVF
भारत में आईयूआई के बारे में अधिक जानें
कृत्रिम गर्भाधान यानि इंट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन (Intrauterine insemination - IUI) को आर्टिफ़िशियल इन्सेमिनेशन भी कहते हैं। आईयूआई उपचार बांझपन के लिए सबसे आम, प्रभावी और सस्ते उपचारों में से एक है।
इंट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन एक आर्टिफिशियल रिप्रोडक्टिव ट्रीटमेंट (Artificial reproductive treatment - ART) है, जिसमें ओव्यूलेशन के दौरान शुक्राणुओं को एक महिला के गर्भाशय (uterus) या फैलोपियन ट्यूब (fallopian tube) में इंजेक्ट किया जाता है। आईयूआई उपचार आईवीएफ की तुलना में कम जटिल और सस्ता भी होता है।
आईयूआई को आमतौर पर इच्छित पिता के शुक्राणु (father's sperm) या दाता शुक्राणु (donor sperm) का उपयोग करके किया जाता है। फर्टिलाइज़ेशन को प्रोत्साहित करने के लिए, शुक्राणुओं को महिला के गर्भाशय के अंदर अंडे के करीब डाला जाता है ताकि वे अंडे को निषेचित (fertilize) कर सकें और सामान्य रूप से गर्भधारण हो सके। यह प्रक्रिया दर्द रहित है और इसमें केवल कुछ मिनट लगते हैं।
आमतौर पर मेल इंफर्टिलिटी के लिए आईयूआई उपचार किया जाता है। मगर, पुरुष बांझपन या महिला बांझपन दोनों ही परिस्थितियों में आईयूआई उपचार की जरूरत पड़ सकती है।
आईयूआई से गर्भधारण की आवश्यकता के कारण निम्न हैं :
अनएक्सप्लेंड इंफर्टिलिटी यानि सामान्य कारणों के मूल्यांकन के बावजूद बांझपन का कोई कारण नहीं पाया गया हो। ऐसे में इंफर्टिलिटी की समस्या हो सकती हैं, जिस स्थिति में कपल आईयूआई उपचार का विकल्प चुन सकते हैं।
एंडोमेट्रियोसिस एक मेडिकल कंडीशन है जब यूटेरस की लाइनिंग जिसे एंडोमेट्रियम कहा जाता है, असामान्य तरीके से दूसरे अंगों की तरफ बढ़ने लगती है जैसे फैलोपियन ट्यूबों (fallopian tubes), ओवरी और पेलविस। एंडोमेट्रियोसिस के कारण गर्भधारण में बाधा आती है, ऐसी परिस्थिति में बांझपन के उपचार के लिए आईयूआई की तकनीक का सहारा लेना मददगार हो सकता है।
ओव्यूलेशन के समय के आस-पास, गर्भाशय ग्रीवा द्वारा प्रोड्यूस होने वाला म्यूकस (mucus), आपकी योनि से फैलोपियन ट्यूब तक के यात्रा के लिए, शुक्राणु को एक आदर्श वातावरण प्रदान करता है। लेकिन, अगर आपका सर्वाइकल म्यूकस बहुत मोटा है, तो यह शुक्राणु की यात्रा को बाधित कर सकता है। गर्भाशय ग्रीवा (cervical mucus) खुद भी शुक्राणु को अंडे तक पहुंचने से रोक सकती है। ऐसे में आईयूआई आपके गर्भाशय ग्रीवा को दरकिनार कर, शुक्राणु को सीधे आपके गर्भाशय में डाल देता है और मौजूद अंडे से फर्टिलाइज होने में सहायता करता है।
आईयूआई उन महिलाओं के लिए भी किया जा सकता है, जिनमें ओवुलेशन की समस्या के कारण बांझपन होता है। ओव्यूलेशन की अनुपस्थिति या अंडे का उत्पादन कम होना, पीसीओएस (PCOS), अनियमित मासिक धर्म चक्र (irregular menstrual cycles) सहित जैसी समस्या के कारण इंफर्टिलिटी की समस्या हो सकती है। ऐसे में बांझपन के उपचार के लिए आईयूआई का विकल्प मददगार हो सकता है।
सीमेन एनालिसिस (semen analysis) के दौरान आपके साथी में शुक्राणु एकाग्रता (sperm concentration) औसत से कम दिख सकता है, स्पर्म की गतिशीलता में कमी दिख सकती है या फिर स्पर्म के आकार में असमानताएँ भी दिख सकती हैं। ऐसे में आईयूआई इनमें से कुछ समस्याओं को दूर कर सकता है, क्योंकि आईयूआई उपचार में स्पर्म वॉश (sperm wash) के दौरान, उच्च गुणवत्ता (highly motile) वाले स्पर्म को निम्न गुणवत्ता वाले स्पर्म से अलग कर किया जाता है।
स्पर्म की अनुपस्थिति के कारण भी पुरुष बांझपन की समस्या हो सकती है, इस स्थिति को एजूस्पर्मिया (Absence of sperm in male - azoospermia) कहते हैं। इस स्थिति में महिलाओं को गर्भवती होने के लिए डोनर स्पर्म (donor sperm) की आवश्यकता होती है। ऐसे में आईयूआई उपचार का विकल्प चुनना आपकी मदद कर सकता है। आईयूआई के द्वारा डोनर स्पर्म या फ़्रोजेन स्पर्म की मदद से पुरुष बांझपन का उपचार किया जा सकता है।
कुछ महिलाओं को अपने साथी के सीमेन (semen) में मौजूद प्रोटीन से एलर्जी हो सकती है। इस स्थिति में जब सीमेन स्किन के कांटेक्ट में आता है तब एलर्जी के कारण योनि में लालिमा, जलन और सूजन हो सकती हैं। अगर आपकी त्वचा प्रोटीन से संवेदनशील है तो भी आईयूआई प्रभावी हो सकता है, क्योंकि स्पर्म को गर्भाशय में डालने से पहले सीमेन में से कई प्रोटीन हटा दिए जाते हैं।
अगर एक महिला या पुरुष को निम्नलिखित में से कोई भी समस्या है, तो उस स्थिति में आईयूआई कराने की सलाह नहीं दी जाती है।
निम्न परिस्थितियों में आईयूआई नहीं होता है कारगर :
आईयूआई ट्रीटमेंट एक सामान्य प्रजनन उपचार है। कई जोड़े जिन्हें गर्भधारण करने में परेशानी हो रही है, वे आईवीएफ से पहले आईयूआई से गर्भधारण का विकल्प आज़माते हैं।
आईयूआई के उपचार के प्रकार निम्न हैं :
इंट्रासर्विकल इनसेमिनेशन (Intracervical Insemination) सबसे पुरानी और सबसे सामान्य कृत्रिम गर्भाधान प्रक्रिया में से एक है। जिसमें गर्भधारण की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए सीधे महिला के प्रजनन पथ (reproductive tract) में शुक्राणु को इंजेक्ट करना शामिल है।
इंट्रावेजाइनल इनसेमिनेशन (IVI) सबसे सरल प्रकार का गर्भाधान (insemination) है, जिसे डोनर स्पर्म का उपयोग करते समय किया जा सकता है बशर्ते जब महिला को प्रजनन (female fertility) से जुड़ी कोई समस्या न हो। इस प्रकिया में शुक्राणु को महिला की योनि (vagina) में इन्सेमिनेट कर दिया जाता है।
इंट्राट्यूबल इंसेमिनेशन में पहले से साफ़ किये गए शुक्राणुओं को सीधे महिला के फैलोपियन ट्यूब में इंजेक्ट कर दिया जाता है।
आईयूआई ट्रीटमेंट से पहले महिला और पुरुष दोनों की अलग-अलग जांच की जाती है और कई तरह के टेस्ट करवाए जाते हैं। बांझपन का निदान करने के लिए किए गए परीक्षणों को आमतौर पर प्री-स्क्रीनिंग परीक्षणों के रूप में जाना जाता है। इन परीक्षणों के परिणामों के साथ डॉक्टर निम्न 5 प्रश्नों का जवाब देते हैं :
एक बार जब आपकी समस्या के बारे में पता चल जाता है, तो एक उपचार योजना आपकी व्यक्तिगत स्थिति के अनुरूप होगी। अनुशंसित दृष्टिकोण (recommended approach) आपकी उम्र, डायग्नोसिस, बांझपन की अवधि, किसी भी पिछले उपचार और आपकी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं पर निर्भर करेगा। जबकि सभी मरीज़ों को सभी डायग्नोस्टिक टेस्ट (diagnostic test) की आवश्यकता नहीं होती है, एक आइडियल ट्रीटमेंट प्लान को निर्धारित करने और इस प्रकार गर्भावस्था के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने में एक संपूर्ण नैदानिक मूल्यांकन (thorough diagnostic evaluation) महत्वपूर्ण होता है।
आईयूआई की प्रक्रिया की ओर रूख करने से पहले डॉक्टर की ओर से महिला को कई तरह के टेस्ट करने की सलाह दी जाती है। ये टेस्ट इसलिए किये जाते हैं ताकि प्रक्रिया के दौरान किसी भी तरह की समस्या न हो और ट्रीटमेंट सफल हो सके।
1. सामान्य स्क्रीनिंग टेस्ट - संक्रामक, आनुवंशिक (General Screening Tests - Infectious, Genetic)
आप और आपके साथी दोनों की, संक्रामक रोग स्क्रीनिंग की जाती है। इनमें शामिल है, क्लैमाइडिया एंटीबॉडी (chlamydia antibody), गोनोरिया (gonorrhea), हेपेटाइटिस बी (hepatitis B), हेपेटाइटिस सी (hepatitis C), सिफलिस सीरोलॉजी (syphilis serology), एचआईवी (HIV) टेस्ट आदि।
इसके अंतर्गत कम्पलीट ब्लड काउंट (complete blood count), ब्लड टाइप और आरएच फैक्टर (blood type & Rh factor), रूबेला टाइटर (rubella titer) टेस्ट किए जाते हैं। ये टेस्ट गर्भावस्था के दौरान भ्रूण को गंभीर जटिलताओं और एनीमिया और अन्य संभावित विकारों से बचाने के लिए किए जाते हैं।
प्रोलैक्टिन (prolactin), टीएसएच (TSH), फ्री थायरोक्सिन (free thyroxine) हार्मोनल परीक्षण गर्भावस्था को प्रभावित करने वाले असामान्यताओं का पता लगाते हैं।
टे सैक्स (tay sach s), सिस्टिक फाइब्रोसिस (cystic fibrosis), सिकल सेल (sickle cell) के लिए टेस्ट किए जाते हैं। अगर आपका मेडिकल हिस्ट्री के अनुसार आपको आनुवंशिक (genetic), ओटो-इम्म्यून डिसीज़ (autoimmune disease) या मेडिकल डिसीज़ (medical disease) का ख़तरा हो सकता है, तो साइकिल शुरू करने से पहले अन्य टेस्ट कराने की भी सलाह दी जा सकती है।
ये टेस्ट सर्वाइकल कैंसर, सर्विक्स से जुड़ी अन्य समस्याओं या यौन संचारित रोगों (sexually transmitted diseases) का पता लगा सकता है। इनमें से कोई भी समस्या आपके गर्भवती होने में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
2. ओवेरियन फंक्शन और ओवरयिन रिजर्व टेस्टिंग (Ovarian Reserve Screening)
लगभग 30-35 % महिला से संबंधित बाँझपन ओवेरियन डिसॉडर के कारण होता है। ऐसे में टेस्ट उद्देश्य हमें जानकारी देना है कि आप ओवुलेट कर रहे हैं या नहीं।
ओवरयिन रिजर्व टेस्टिंग के अंतर्गत निम्न टेस्ट किए जाते हैं : -
अल्ट्रासाउंड, पीरियड साइकिल के दूसरे, तीसरे या चौथे दिन किया जाता है। इससे अंडाशय (ovaries) के आकार, मात्रा और फॉलिकल की संख्या (मासिक धर्म चक्र के शुरुआती समय के अपरिपक्व अंडे) की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
एफएसएच (FSH), एलएच (LH) , ई2 (E2) टेस्ट किए जाते हैं। हार्मोन के स्तर जैसे कि फॉलिकल स्टिम्युलेटिंग हार्मोन, ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन और एस्ट्राडियोल को मासिक धर्म चक्र की शुरुआत में देखकर, डॉक्टर को एक महिला के डिम्बग्रंथि रिजर्व की जानकारी मिल मिलती है।
3. फॉलोपियन ट्यूब मूल्यांकन (Fallopian Tube Evaluation)
फैलोपियन ट्यूब से जुड़े मुद्दे, महिला बांझपन की लगभग 30% समस्याओं का कारण हो सकते हैं। सामान्य समस्याएं ट्यूबल ब्लॉकेज (tubal blockage) या पिछले अनडायगनोस्ड पेल्विक संक्रमण (undiagnosed pelvic infection) से होने वाली स्कारिंग, पेट के संक्रमण जैसे एपेंडिसाइटिस (appendicitis), पहले हुई सर्जरी, एक्टोपिक प्रेगनेंसी (ectopic pregnancy) या एंडोमेट्रियोसिस (endometriosis) से संबंधित होती हैं।
हिस्टेरोसाल्पिंगोग्राफी (Hysterosalpingography) एक एक्स-रे परीक्षण होता है, जिसमें योनि और सर्विक्स के माध्यम से एक पतली ट्यूब को अन्दर डालकर, गर्भाशय में कंट्रास्ट मटेरियल (contrast material) या डाई इंजेक्ट किया जाता है। इस टेस्ट से पता लगाया जाता है कि फॉलोपियन ट्यूब खुले हैं या फिर उनमें ब्लॉकेज है।
4. गर्भाशय का मूल्यांकन (Uterine Evaluation)
गर्भाशय को एंडोमेट्रियम (endometrium) नामक कोशिकाओं की एक विशेष परत द्वारा पंक्तिबद्ध (lined) किया जाता है, जहां भ्रूण का प्रत्यारोपण (implant) होता है और गर्भावस्था में विकसित होना शुरू होता है। भ्रूण के आरोपण के संभावित दोषों या बाधाओं के लिए गर्भाशय गुहा (uterine cavity) का पूरी तरह से मूल्यांकन करना महत्वपूर्ण होता है।
डिफेक्ट्स के उदाहरण जैसे- यूटेरिन स्कार टिश्यू (uterine scar tissue - पिछले गर्भधारण या प्रक्रियाओं से), पोलिप्स (polyps), फ़िब्रोइड्स (fibroids) और गर्भाशय में अन्य संरचनात्मक दोष (structural defects)।
आपकी विशिष्ट स्थिति के आधार पर, मूल्यांकन में निम्नलिखित परीक्षण शामिल हो सकते हैं:
आमतौर पर मेंस्ट्रुअल साइकिल शुरू होने के दूसरे, तीसरे या चौथे दिन पर पेल्विक अल्ट्रासाउंड किया जाता है। यह चिकित्सक को गर्भाशय गुहा (uterine cavity) की दिशा और लंबाई के बारे में जानकारी देता है।
हिस्टेरोस्लिंग्पोग्राम - एचएसजी (Hysterosalpingogram - HSG) से गर्भाशय गुहा (uterine cavity) के बनावट से संबंधित दोषों (structural defects) की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
यूटेरस में कम मात्रा में स्टेराइल फ्लूइड डालकर यूटरिन वॉल (uterine wall) और इनर यूटरिन कैविटी (inner uterine cavity) का मूल्यांकन किया जाता है। यह परीक्षण यूटरिन वॉल और एंडोमेट्रियल कैविटी, दोनों की असामान्यताओं के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
डायग्नोस्टिक हिस्टेरोस्कोपी (Diagnostic Hysteroscopy) परीक्षण आईवीएफ जैसे प्रजनन उपचार से गुज़रने वाली महिलाओं के लिए या जिन लोगों को सोनोहिस्ट्रोग्राफी (sonohysterography) पर संदेह है, उनके लिए सिफारिश की जाती है।
एंडोमेट्रियल बायोप्सी (Endometrial Biopsy) टेस्ट केवल कुछ परिस्थितियों में एंडोमेट्रियम के विकास में समस्याओं का निदान करने के लिए किया जाता है, जिसे ल्यूटल फेज़ डिफेक्ट (luteal phase defect) कहा जाता है, या एंडोमेट्रियल लाइनिंग (endometrial lining) के संभावित संक्रमण का पता लगाने के लिए किया जाता है।
इनफर्टिलिटी के मामलों में 40% मामले मुख्य तौर पर पुरुष से संबंधित इनफर्टिलिटी के कारण होते हैं। पुरुषों के निजी अंगों की जांच सहित एक सामान्य शारीरिक परीक्षा हो सकती है।
साथ ही कुछ निम्न विशिष्ट प्रजनन परीक्षण किए जाते हैं :
वीर्य विश्लेषण (Semen Analysis) परीक्षण एक अनुभवी एंड्रोलॉजिस्ट द्वारा किया जाता है, जो शुक्राणु का सूक्ष्म (microscopic) मूल्यांकन करते हैं। सीमेन एनालिसिस से प्राप्त जानकारी जैसे कि शुक्राणुओं की संख्या और शुक्राणु का आकार, यह निर्धारित करने में मदद करता है कि अंडे को निषेचित करने के लिए किस तकनीक का उपयोग किया जाए।
इन विकल्पों में ओवुलेशन को ध्यान में रखते हुए सही समय पर संभोग (timed intercourse), अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान (intrauterine insemination), पारंपरिक आईवीएफ (conventional IVF) या आईसीएसआई (intracytoplasmic sperm injection) शामिल हैं।
ये परीक्षण ब्लड और सीमेन दोनों में असामान्य कणों (abnormal particles) का पता लगाता है, जिन्हें एंटीबॉडीज़ (antibodies) कहा जाता है, जो अन्यथा सामान्य शुक्राणु को हानि पंहुचा सकते हैं या नष्ट कर सकते हैं।
ये एक क्रोमोसोमल एनालिसिस होता है, जो संभावित महत्वपूर्ण असामान्यताओं (abnormalities) की पहचान कर सकता है, जिससे निषेचन (fertilization) और गर्भावस्था (pregnancy) में बाधा आती है। बाद के उपचार के विकल्पों में आईवीएफ के साथ प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस (Preimplantation Genetic Diagnosis) या डोनर स्पर्म का उपयोग शामिल हो सकता है।
जब शुक्राणु की एकाग्रता (concentrations) बहुत कम होती है, तो इसका कारण आनुवंशिक हो सकता है। रक्त परीक्षण से पता चल सकता है कि वाई क्रोमोसोम (Y chromosome) में परिवर्तन हैं जो कि एक आनुवंशिक असामान्यता का संकेत हो सकता है, यह नेचुरल प्रेगनेंसी रेट को कम करता है।
आनुवंशिक परीक्षण (Y chromosome Deletion testing - Genetic disorder testing) जब शुक्राणु की कन्संट्रेशन (concentrations) बहुत कम होती है, तो इसका कारण आनुवंशिक हो सकता है। रक्त परीक्षण से वाई क्रोमोसोम (Y chromosome) में विकार का पता चल सकता है जो कि आनुवंशिक असामान्यता का संकेत हो सकता है, यह नेचुरल प्रेगनेंसी रेट को कम करता है।
विभिन्न जन्मजात या फैमिली हिस्ट्री में मिले सिंड्रोम जैसे सिस्टिक फाइब्रोसिस का पता लगाने के लिए आनुवंशिक परीक्षण की सलाह दी जा सकती है. आईवीएफ के साथ, आईसीएसआई की उन्नत प्रजनन तकनीक का उपयोग करके, निषेचन हो जा सकता है।
ये एक नई परीक्षण प्रक्रिया है, जो लगातार गर्भावस्था हानि या अप्रत्याशित, अस्पष्टीकृत और बार-बार असफल आईवीएफ चक्रों के मामलों में की जाती है। संभवतः विफल निषेचन (failed fertilization) पुरुष कारक बांझपन (male factor infertility) से संबंधित होती है। यह परीक्षण शुक्राणु में डीएनए फ्रेगमेंटेशन के दोषों का विश्लेषण करता है।
अध्ययनों से पता चला है कि इस परीक्षण में महत्वपूर्ण असामान्यताएं प्राकृतिक गर्भाधान (natural conception) की संभावना को कम करती हैं। हालांकि अच्छी बात ये है कि आईसीएसआई के साथ आईवीएफ जैसी उन्नत प्रक्रिया गर्भावस्था को प्राप्त करने में मदद कर सकती है। यह परीक्षण आमतौर पर लगातार गर्भावस्था हानि से पीड़ित रोगियों के लिए किया जाता है।
टेस्टिकुलर बायोप्सी परीक्षण में सुई के साथ अंडकोष से नमूने को निकालना शामिल है। टेस्टिकुलर बायोप्सी के परिणाम बताते हैं कि शुक्राणु उत्पादन सामान्य है तो आपकी स्पर्म ट्रांसपोर्ट (sperm transport) की समस्या ब्लॉकेज या किसी अन्य कारण से हो सकती है।
सभी मरीज़ों को हर नैदानिक परीक्षण की आवश्यकता नहीं होती है, आइडियल ट्रीटमेंट प्लान का निर्धारण करने में एक संपूर्ण नैदानिक मूल्यांकन (thorough diagnostic evaluation) महत्वपूर्ण होता है, और इस प्रकार गर्भावस्था का अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करना है।
आईयूआई प्रक्रियाओं के मामले में दवाओं का सेवन काफी आम है। महिला को कई फॉलिकल और एक से अधिक अंडे, आमतौर पर बेहतर गुणवत्ता वाले अंडे के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए ओव्यूलेशन प्रेरक दवाएं दी जाती हैं। डॉक्टर ये तय करते हैं कि आईयूआई मरीज़ को किस प्रकार की दवाएं लेनी चाहिए।
कुछ महिलाओं में, अगर ओव्यूलेशन का सही समय है और अंडे स्वस्थ हैं, तो आईयूआई उपचार शुरू करने के लिए दवाओं की कोई आवश्यकता नहीं है, जबकि अन्य परिस्थितियों के लिए, उन्हें ओव्यूलेशन में मदद करने या उनके अंडे परिपक्व होने तक ओव्यूलेशन में देरी करने के लिए अलग-अलग दवा की आवश्यकता हो सकती है। किसी भी इंजेक्टेबल ड्रग्स को लेने से पहले, एक महिला, बेसलाइन अल्ट्रासाउंड और खून के स्तर की जांच से गुज़रती है।
ओव्यूलेशन इंडक्शन में आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली इनफर्टिलिटी ड्रग्स या दवाएं इस प्रकार हैं :
इसमें सबसे आम दवाओं में क्लोमिड (clomid) और लेट्रोज़ोल (letrozole) शामिल है। ये पिट्यूटरी ग्लैंड हार्मोन जारी करने के लिए ज़िम्मेदार होता है। इन हार्मोन्स से फॉलिकल स्टिम्युलेटिंग हार्मोन (follicle-stimulating hormone) और ल्यूटिनाइज़िंग हार्मोन (luteinizing hormone) निकलते हैं। इस हार्मोन की मदद से अंडे रिलीज़ होने के साथ-साथ मैच्योर भी होते हैं।
एफएसएच (FSH), एलएच (LH,), एचएमजी (HMG) और एचसीजी (HCG) सहित इंजेक्टेबल फर्टिलिटी ड्रग्स हैं। आमतौर पर ये फॉलिकल स्टिम्युलेटिंग हार्मोन (follicle stimulating hormone) या ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (luteinizing hormone) को उत्तेजित करने के लिए त्वचा के नीचे (subcutaneous) या इंट्रामस्क्युलर इंजेक्शन (intramuscular injections) के रूप में दिये जाते हैं। ये दवाएं ओरल ओव्यूलेशन दवाओं की तुलना में बहुत अधिक शक्तिशाली उत्तेजना प्रदान करती हैं, और इसमें बहुत बार-बार निगरानी की आवश्यकता होती है।
हर फर्टिलिटी ट्रीटमेंट में ओव्यूलेशन मॉनिटरिंग ज़रूरी होता है और आईयूआई या आर्टिफिशियल इन्सेमिनेशन के साथ मॉनिटरिंग की मात्रा चक्र के प्रकार के आधार पर भिन्न होती है।
नेचुरल साइकिल के साथ आईयूआई में कम-से-कम निगरानी की आवश्यकता होती है। इन मामलों में, ओवर-द-काउंटर ओव्यूलेशन प्रेडिक्टर किट या एलएच प्रेडिक्टर किट (LH predictor kits) इस्तेमाल किया जाता है, जिन्हें पहले स्तर की निगरानी के रूप में भी जाना जाता है। इसका इस्तेमाल ओव्यूलेशन के सही समय का पता लगाने के लिए किया जाता है, फिर आईयूआई की प्रक्रिया उसके अनुसार निर्धारित की जाती है। इसके बाद डॉक्टर ओवुलेशन की जांच के लिए ब्लड टेस्ट या अल्ट्रासाउंड कर सकते हैं। ओवुलेशन होने पर गर्भाधान की प्रक्रिया की जाती है।
आईयूआई में क्लोमीफीन-सिट्रेटे (clomiphene citrate - clomid) चक्रों की निगरानी अधिक होती है। एक अल्ट्रासाउंड (ट्रांसवाजिनल अल्ट्रासाउंड) साइकिल के दूसरे, तीसरे या चौथे दिन पर किया जाता है ताकि यह पुष्टि हो सके कि क्लोमिड शुरू करने से पहले कोई ओवेरियन अल्सर (ovarian cysts) तो मौजूद नहीं है। अल्सर की उपस्थिति में क्लोमिड लेने से असामान्य प्रतिक्रिया हो सकती है और पहले से मौजूद सिस्ट का विस्तार हो सकता है।
परिणाम सामान्य आने पर महिला पांच दिनों तक रोज़ाना 50 से 150 मिलीग्राम तक क्लोमिड लेती है। एक मध्य चक्र (11-14 दिनों के बीच) के दौरान मैच्योर फॉलिकल (20-24 मिमी) की संख्या और एंडोमेट्रियल अस्तर का मूल्यांकन करने के लिए अल्ट्रासाउंड किया जाता है। 10% महिलाओं में, क्लोमिड के एंटी-एस्ट्रोजन प्रभाव, एंडोमेट्रियल अस्तर के अप्रत्याशित पतलेपन का कारण बन सकता है, जो एक भ्रूण के आरोपण के लिए हानिकारक है।
अगर ऐसा दो या दो से अधिक कोशिशों के बाद भी होता है, तो क्लोमिड एक उचित उपचार विकल्प नहीं हो सकता है। एक बार जब मैच्योर फॉलिकल मौजूद होते हैं, तो एचसीजी किया जाता है और 24-48 घंटों के अंदर आईयूआई होता है। वहीं क्लोमिड के साथ जुड़वाँ बच्चे के होने का ख़तरा 8% तक होता है।
गोनैडोट्रोपिन चक्र (फर्टिलिटी शॉट्स) दवा की लागत, अल्ट्रासाउंड और ब्लडवर्क की आवश्यकता दोनों को बढ़ाते हैं। इन चक्रों में, एक बेसलाइन को एक बार फिर चक्र के दो से 4 दिनों के अंदर किया जाता है ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी सिस्ट मौजूद नहीं है। इस समय पर, इंजेक्टेबल दवा शुरू की जाती है।
कई दिनों तक अल्ट्रासाउंड और ब्लड हार्मोन लेवल, फॉलिकल के विकास को देखने के लिए और ये सुनिश्चित करने के लिए कि ओवरीज़ बहुत अधिक उत्तेजित नहीं हो रहे (ovarian hyperstimulation syndrome) और बहुत अधिक फोलिक मौजूद नहीं है, किया जायेगा।
इस तरह की उत्तेजना से एक से अधिक गर्भावस्था होने का जोखिम होता है। अगर एक बार कई फॉलिकल्स (follicles) विकसित हो रहे हैं, तो तीन या उससे अधिक बच्चे के होने का रिस्क बढ़ जाता है। गोनाडोट्रोपिन के साथ जुड़वाँ होने का जोखिम लगभग 20% होता है और बहुत अधिक फॉलिकल (4-5 से अधिक होने का रिस्क रहता है) की उपस्थिति साइकिल को रद्द करने का संकेत दे सकती है।
बहुत से लोग इस बात से अनजान होते हैं कि ट्रिपल या उससे अधिक गर्भावस्था अधिकांश गोनैडोट्रोपिन/आईयूआई उपचारों का एक परिणाम होता है, जिसे उचित तरीके से प्रबंधित और रद्द नहीं किया जाता है। वहीं ये एक गलत धारणा है कि अधिक गर्भवस्था होने की संभावना आईयूआई की जगह आईवीएफ में अधिक होती है। दरअसल आईवीएफ बहुत अधिक नियंत्रित उपचार प्रदान करता है, जिसमें भ्रूण के स्थानांतरण की संख्या तक सीमित होती है।
एक बार जब मैच्योर फॉलिकल की एक उचित संख्या का पता चल जाता है (1 से 4 के बीच), तो इनसेमिनेशन के बाद एचसीजी इंजेक्शन दिया जाता है।
अच्छे गुणवत्ता और आकार वाले स्पर्म के लिए इजाकुलेशन पर 2-4 दिनों तक संयम रखने के बाद सीमेन का सैंपल घर या क्लिनिक पर निकालकर दिया जाता है।
सैंपल स्टेराइल कलेक्शन कप (sterile collection cup) में देना सबसे अच्छा तरीका माना जाता है। होम कलेक्शन के मामले में सीमेन के सैंपल को आधे घंटे के अंदर क्लिनिक या लैब में पहुंचाना होता है और जाने के क्रम के दौरान शरीर के तापमान के आधार पर और अंधेरे में रखा जाता है। सीमेन सैंपल को कलेक्ट करने के बाद इसे गर्भाधान (insemination) के लिए लैब में तैयार किया जाता है।
पुरुष साथी के सीमेन में स्पर्म होते हैं। स्पर्म को लेबोरेटरी में साफ़ करने के दौरान सीमेन से अलग किया जाता है। सफाई के बाद स्पर्म फर्टिलाइज़ेशन की प्रक्रिया के लिए उपयोग करने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाता है।
इसके बाद ये सुनिश्चित किया जाता है कि सफल निषेचन (fertilization) और भ्रूण (embryo) के गठन के लिए केवल शुक्राणुओं (sperms) को इंजेक्ट किया जाए। अगर अनजाने में या गलती से सीमेन (semen) इंजेक्ट हो जाता है, तो ये महिला साथी के लिए इन्फेक्शन का कारण बन सकता है।
आईयूआई उपचार के लिए डोनर के स्पर्म का उपयोग करने वाले मरीज़ों के लिए क्लिनिक के अंदर गर्भाधान की प्रक्रिया शुरू करने से लगभग 2-3 घंटे पहले स्पर्म को पिघलाया जाता है।
गर्भधान का सही समय पर होना बेहद जरूरी है, या तो ओवुलेशन के दौरान या ओवुलेशन के ठीक पहले। कुछ मामलों में, शुक्राणु महिला के प्रजनन ट्रैक्ट (female reproductive tract) में पाँच दिनों (सेक्स करने के बाद) तक रह सकते हैं, जिससे एक अंडा फर्टिलाइज़ हो सकता है। हालांकि, अंडे लगभग 12-24 घंटों (अधिकतम) तक ही निषेचित हो सकते हैं।
आईयूआई गर्भधान का सही समय पर किया आवश्यक है ताकि शुक्राणु और अंडे एक ही वक़्त पर फैलोपियन ट्यूब में मौजूद हों। इसीलिए, ज़्यादातर ओवुलेशन के एक दो दिन बाद ही आईयूआई की प्रक्रिया की जाती है।
इंट्रायूटेरिन इंसेमिनेशन के लिए जाने में लगभग 15 से 20 मिनट लगते हैं और आमतौर पर डॉक्टर के क्लिनिक में किया जाता है। आईयूआई प्रक्रिया में केवल एक या दो मिनट लगते हैं और किसी दवा या पेन रिलीवर की आवश्यकता नहीं होती है। बांझपन विशेषज्ञ (infertility specialist) या स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर (gynecologist) ये प्रक्रिया करते हैं।
प्रक्रिया के दौरान मेज़ पर लेटते समय, आप अपने पैरों को स्टीरप्स में डालेंगे और फिर एक स्पेक्युलम (speculum) आपकी योनि में डाला जाएगा - जैसे आपको पैप परीक्षण के दौरान अनुभव हुआ था।
सबसे पहले एक लंबी, पतली, फ्लेक्सिबल ट्यूब (कैथेटर), जिसमें हेल्दी स्पर्म होते हैं उसे अटैच किया जाता। आपकी योनि में, आपके सर्वाइकल ओपनिंग के माध्यम से गर्भाशय में कैथेटर (cathetar) को इन्सर्ट किया जाता है। इसके बाद ट्यूब के माध्यम से शुक्राणु के सैम्पल को पुश करके गर्भाशय तक पहुंचाया जाता है। फिर कैथेटर निकालने के बाद स्पेक्युलम को निकाला जाता है।
इंसेमिनाशन के बाद, महिला को थोड़ी देर लेटने के लिए कहा जाता है और बाद में घर जाने की अनुमति दी जाती है। कुछ महिलाओं को प्रक्रिया असहज लगती है और वे गर्भाधान के बाद दिन के दौरान कुछ ऐंठन और स्पॉटिंग का अनुभव कर सकती हैं। महिलाओं को किसी भी तरह के आईयूआई गर्भावस्था के लक्षण के लिए सतर्क रहने की सलाह दी जाती है। 14 दिनों के अंदर सफल IUI गर्भावस्था के परिणाम दिखाई देने लग सकते हैं।
शुक्राणुओं को गर्भाशय में इंजेक्ट करने के 2 सप्ताह के बाद, गर्भावस्था परीक्षण किया जाता है। यह निर्धारित करने में मदद करता है कि प्रक्रिया सफल हुई या नहीं।
अगर प्रेगनेंसी हार्मोन अभी तक औसत दर्जे के स्तर पर नहीं हैं, तो टेस्ट का परिणाम नकारात्मक हो सकता है, हालांकि आप वास्तव में गर्भवती होती हैं।
यदि आप ओव्यूलेशन-उत्प्रेरण दवा (ovulation-inducing medication) जैसे एचसीजी (HCG) का उपयोग कर रहे हैं, तो आपके शरीर में अभी भी जो दवा चल रही है, वह गर्भावस्था का संकेत दे सकती है जबकि आप वास्तव में गर्भवती नहीं होती हैं।
नकारात्मक परिणामों (negative test) के मामले में, गर्भावस्था परीक्षण फिर से किया जाता है। फिर भी, अगर महिला प्रेग्नेंट नहीं होती है, तो स्त्री रोग विशेषज्ञ आपको फिर से आईयूआई प्रक्रिया से गुज़रने की सलाह देंगी। आप अपने संबंधित स्त्री रोग विशेषज्ञ के साथ इस पर चर्चा कर सकते हैं।
कई प्रकाशित अध्ययन हैं, जो बताते हैं कि क्या फैलोपियन ट्यूब में अंडे और शुक्राणु की मिलन को सुविधाजनक बनाने के लिए एक या दो गर्भाधान किए जाने चाहिए। कुछ अध्ययनों से ये बात सामने आयी है कि सही समय पर एक बार में किये गए इंसेमिनाशन की तुलना में एक दिन में किए गए दो गर्भाधानों के साथ गर्भावस्था की सफलता दर में कोई सुधार नहीं दिखा। वही कुछ अन्य अध्ययनों से ये पता चलता है कि जब दो गर्भाधान बैक टू बैक दिनों में किए जाते हैं तो प्रेगनेंसी की संभावना सबसे अधिक होती है।
विभिन्न निष्कर्षों के द्वारा यह पाया गया है कि अगर ओव्यूलेशन के दौरान सिंगल इंसेमिनेशन प्रक्रिया सही समय पर नहीं किया जाता है, तो डबल इंसेमिनेशन से आईयूआई प्रक्रिया के बाद गर्भधारण या सफलता दर बेहतर हो सकती है। दो में से कम से कम एक गर्भाधान सही ढंग से हो सकता है। हालांकि, अधिकांश प्रजनन विशेषज्ञों (fertility experts) का मानना है कि उचित समय पर इन्सेमिनेशन करने पर एक बार में ही सफलता मिलती है।
सामान्य तौर पर, उन महिलाओं में आईयूआई उपचार अधिकतम 3-4 महीनों तक प्रयास किया जा सकता है जो नेचुरल रूप से खुद ओव्युलेट (अंडे जारी करना) कर रही हैं।
पॉलीसिस्टिक अंडाशय (polycystic ovaries) और ओव्यूलेशन की कमी वाली महिलाओं में लंबे समय तक (6 महीने तक) आईयूआई की कोशिश करना उचित है, जिन्हें ओव्यूलेट करने के लिए दवाएं दी गई हैं।
अगर क्लोमिड (Clomid) के साथ आईयूआई उपचार में सफलता नहीं मिलती है तो आईवीएफ की ओर रूख करने से पहले गोनाडोट्रोपिन (injectable gonadotropins) के साथ आईयूआई का विकल्प चुनें। कई मामलों में, गोनाडोट्रोपिन के साथ आईयूआई की सफलता दर क्लोमिड के साथ आईयूआई की तुलना में बेहतर होती है।
गोनाडोट्रोपिन (injectable gonadotropins) के साथ आईयूआई कराने वाली 85-90% महिलाएँ 4-6 चक्रों (cycles) के बाद सफलतापूर्वक गर्भ धारण कर सकती हैं।
भले ही आईयूआई की सफलता दर आईवीएफ से कम है, मगर आईयूआई उपचार के कुछ लाभ भी हैं।
आईयूआई की लागत आईवीएफ से कम है, जो आसानी से अधिकांश दंपत्ति के लिए संभव है।
आईयूआई अपेक्षाकृत कम जोखिम वाली प्रक्रिया है। आईयूआई ट्रीटमेंत मे संक्रमण (infection) होने का बहुत कम जोखिम होता है। कुछ सबसे बड़े जोखिम इस्तेमाल की जाने वाली प्रजनन दवाओं से आते हैं।
अगर आप गोनैडोट्रॉपिंस (gonadotropins) का उपयोग कर रहे हैं, तो आपको डिम्बग्रंथि हाइपरस्टीमुलेशन सिंड्रोम (ovarian hyperstimulation syndrome) के विकसित होने का ख़तरा हो सकता है।
इसके अलावा ट्रीटमेंट से जुड़ा सबसे बड़ा ड्रॉबैक (drawback) है कि इसमें गर्भपात होने की संभावना होती है। दरअसल आईयूआई से गर्भधारण के दौरान ली गई प्रजनन दवाओं के कारण एक से अधिक बच्चे के होने की आशंका होती है। ऐसे में एक से अधिक बच्चे के साथ गर्भधारण से गर्भपात (miscarriage), समय से पहले प्रसव, गर्भकालीन मधुमेह (gestational diabetes), जन्म के समय कम वज़न (low birth weight), प्रीक्लेम्पसिया (preeclampsia), जन्म के समय होने वाली जटिलताओं (complications at birth) जैसे ख़तरे बढ़ सकते हैं।
इनफर्टिलिटी के कारण जो दंपत्ति माता-पिता बनने में अक्षम होते हैं उनके लिए आधुनिक तकनीक जैसे आईयूआई आशा की किरण साबित होती है। आईयूआई की सफलता बहुत सारे कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि महिला की उम्र और दंपत्ति में प्रजनन समस्या का मुख्य कारण सबसे महत्वपूर्ण होता है। महिला की उम्र जितनी कम होती है उसके आईयूआई के माध्यम से प्रेग्नेंट होने की संभावना उतनी ही अधिक बढ़ जाती है।
वहीं पहली कोशिश में आईयूआई की सफलता अतिरिक्त प्रयासों की तुलना में कुछ अधिक होती है। अगर इनसेमिनेशन प्रजनन क्षमता को बढ़ा रही है, तो उस स्थिति में जल्द ही गर्भावस्था की उम्मीद की जा सकती है।
इंट्रायूटेरिन इन्सेमीनेशन (Intrauterine insemination) और इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (In vitro fertilization) दोनों ऐसे फर्टिलिटी ट्रीटमेंट हैं, जिनका इस्तेमाल उन जोड़ों की मदद के लिए किया जाता है, जिन्हें इनफर्टिलिटी के कारण गर्भधारण (concieve) करने में परेशानी आती है। इन दोनों के परिणाम एक होते हैं लेकिन दोनों में कई भिन्नताएँ हैं।
आमतौर पर आईयूआई (IUI) से गर्भधारण के लिए उपलब्ध पैकेजेज़ में अल्ट्रासाउंड व परीक्षण का ख़र्च, खून से संबंधित जांच का ख़र्च, प्रयोगशाला में की जाने वाली प्रक्रियाओं का ख़र्च, गर्भाधान (insemination) की प्रक्रिया का ख़र्च, डॉक्टर से परामर्श एवं अन्य चिकित्सीय सहायता का ख़र्च शामिल होता है।
आईयूआई पैकेज का ख़र्च आपकी जरूरत के मुताबिक घटता या बढ़ता है जैसे आपका पहले गर्भपात हुआ है नहीं, पहले IUI विफल तो नहीं हुआ, कौन-कौन से टेस्ट करवाने हैं और डॉक्टर की कंसल्टेशन फीस। हालांकि, ओवुलेशन इंडक्शन, मॉनिटरिंग, स्पर्म एक्सट्रैकशन और गर्भधान की प्रक्रिया पैकेज के ख़र्च को प्रभावित कर सकती है।
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अगर आप आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हैं या आप आप आईयूआई ट्रीटमेंट का खर्च एक बार में अदा नहीं कर सकते हैं तो IUI उपचार के लिए मेडिकल लोन लेना आपके लिए मददगार साबित हो सकता है। 0% ब्याज़ से लोन पाने के लिए मेडिकल लोन की शर्तें जानना बहुत जरूरी है।
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आईयूआई की मदद से माता-पिता बनने का सुख आसान प्रक्रिया है। हालांकि इस ओर रूख करने से पहले दंपत्ति को इस उपचार से जुड़ी लागत, सफलता दर और अच्छे आईयूआई के अच्छे डॉक्टर और हॉस्पिटल की जानकारी ज़रूर हासिल कर लेनी चाहिए।
भारत में IUI की लागत इतनी अधिक नहीं है और आईयूआई की सिंगल साइकिल पैकेज के दौरान आपको 5000-15000 का खर्च हो सकता है। आईयूआई उपचार का खर्च फॉलिकल विकास को ट्रैक करने के लिए आवश्यक नैदानिक निगरानी और परीक्षण (clinical monitoring and testing) की मात्रा पर निर्भर करता है, जैसे ओव्यूलेशन इंडक्शन (ovulation induction), ओव्यूलेशन पर नज़र रखना (tracking of ovulation), अल्ट्रासाउंड स्कैन (ultrasound scans), विभिन्न प्रकार के परामर्श और दवाएं। आईयूआई लागत में उपचार के दौरान प्रक्रिया, आईयूआई इंजेक्शन, डॉक्टर परामर्श और अल्ट्रासाउंड का खर्च शामिल हैं। इसके अलावा आईयूआई उपचार का खर्च दंपत्ति की आयु और चिकित्सा इतिहास के आधार पर आवश्यक चक्रों, उपचार योजनाओं और दवाओं की संख्या पर भी निर्भर करता है।
आईयूआई उपचार की प्रक्रिया आसान है और सफलता दर की भी संभावना बनी रहती है लेकिन उपचार के लिए एक सही और अनुभवी डॉक्टर का चयन करना बहुत महत्वपूर्ण है। आईयूआई उपचार के लिए डॉक्टर का चयन करते वक़्त कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। जैसे - डॉक्टर के बारे में ऑनलाइन रिसर्च करे, डॉक्टर की योग्यता पर विचार करें और ध्यान दें कि वो फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट हो, डॉक्टर की उपचार से जुड़ी सफलता दर की जानकरी लें, नवीनतम तकनीकों पर प्रशिक्षण के बारे में पता करें, मरीज़ के प्रति डॉक्टर का व्यवहार जरूर देखें।
बेहतर उपचार के लिए बेहतर क्लीनिक का चयन करना बेहद आवश्यक है।
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भारत में आईयूआई (iui) उपचार का खर्च
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Stanley Road, allahabad
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44%
आईयूआई खर्च - ₹ 18,000
भारत में आईयूआई (IUI) उपचार व गर्भधारण से जुड़े सवाल
क्या टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया दर्दनाक है? आईवीएफ उपचार में क्या होता है? आईवीएफ ट्रीटमेंट से गर्भधारण व आईवीएफ गर्भावस्था की पूरी प्रक्रिया से जुड़े सवाल व जवाब
आईयूआई - इंट्रायूटेरियन इन्सेमिनेशन, गर्भधारण के लिए की जाने वाली एक प्रक्रिया है जिसमें एक पतली और फ़्लेक्सिबल कैथेटर ट्यूब की मदद से स्पर्म को गर्भाशय के अंदर फर्टिलाइज़ेशन के लिए डाला जाता है। इस प्रक्रिया में एक से दो मिनट का समय लगता है।
इजैक्यूलेशन के द्वारा स्पर्म को एक स्टेराइल कलेक्शन कप में इक्कठा किया जाता है। अगर आप स्पर्म को घर पर इक्कठा कर रहें हैं तो प्रक्रिया से एक घंटे पहले आपको सैंपल क्लीनिक में जमा कराने होंगे। घर के अलावा आप क्लीनिक के 'कलेक्शन रूम' का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
सीमेन सैंपल इक्कठा करने और स्पर्म को गर्भाशय में डालने की प्रक्रिया के बीच "स्पर्म वॉश" की प्रक्रिया होती है। स्पर्म वॉश की प्रक्रिया में 30 मिनट से लेकर आधे घंटे तक का समय लगता है। आमतौर पर स्पर्म वॉश की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही आईयूआई की प्रक्रिया शुरु की जाती है।
जी हाँ, आईयूआई तकनीक बांझपन का उपचार है और इससे गर्भधारण संभव है।
काश! नहीं, प्रयास करें!
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मेरा पहले गर्भपात हो गया था और पिछले दो वर्षों से मैं गर्भधारण करने की कोशिश कर रही थी। केयर टीम के द्वारा दी गई देखभाल और सहायता काफी अच्छी थी। उनकी सहायता ने हमारे परिवार को पूरा करने में मदद की।
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