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भारत में गर्भावस्था के दौरान प्रसवपूर्व देखभाल
भारत में गर्भावस्था के दौरान प्रसवपूर्व देखभाल की जानकारी। यहाँ जानें, प्रसवपूर्व देखभाल से जुड़े फायदे, जोखिम, सावधानियां, डाइट, योग व व्यायाम टिप्स।
भारत में प्रसवपूर्व देखभाल के बारे में अधिक जानें
गर्भावस्था के दौरान माँ व बच्चे की सुरक्षा के लिए नियमित जांच व देखभाल प्रसवपूर्व देखभाल कहलाती है। प्रेगनेंसी के समय बहुत-सी बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है। गर्भावस्था के दौरान प्रसवपूर्व देखरेख आपको और आपके गर्भस्थ शिशु को स्वस्थ रखने में मदद करती है। प्रेगनेंसी केयर करने वाले डॉक्टर्स आपकी शारीरिक स्थिति, वजन और यूरिन सैंपल (urine sample) की जांच करते हैं। गर्भावस्था के चरण और स्थिति के आधार पर चिकित्सक ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड भी करते हैं। इसके अलावा आपके डॉक्टर आपको खान-पान, जीवनशैली, योगा और व्यायाम से जुड़ें पहलुओं पर भी सलाह देते हैं।
गर्भावस्था के सफ़र में प्रसवपूर्व देखभाल माँ व बच्चे के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। प्रसवपूर्व देखभाल आपको और आपके बच्चे को स्वस्थ रखने में मदद करती है। आपके डॉक्टर प्रसवपूर्व देखरेख के दौरान गर्भस्थ शिशु के विकास की निगरानी करते हैं साथ ही संभावित समस्याओं का पता लगाने और उन्हें रोकने के लिए नियमित परीक्षण करते हैं।
एक रिसर्च के मुताबिक, जिन माताओं की प्रसवपूर्व देखभाल नहीं होती है उनके बच्चे सामान्य बच्चों की तुलना में ना सिर्फ 3 गुना कम वजन के साथ पैदा होते हैं बल्कि ऐसी महिलाओं का मृत्यु का जोखिम भी 5 गुना बढ़ जाता है।
जैसे ही आपको पता चलता है कि आप गर्भवती हैं, आप प्रसवपूर्व देखभाल शुरू कर सकती हैं। हालांकि आप गर्भवती होने से पहले ही डॉक्टर से सलाह-मशवरा कर सकती हैं और उनके संपर्क में रह सकती हैं। लेकिन अगर गर्भवस्था की योजना से पहले डॉक्टर के संपर्क में रहना संभव नहीं है तो पहली बार माहवारी चक्र बंद होते ही जितनी जल्दी हो सके डॉक्टर से संपर्क करें और प्रसवपूर्व अपॉइंटमेंट लेना शुरू कर दें।
18 से 35 साल की हेल्दी महिलाओं को प्रेगनेंसी के समय कुछ इस प्रकार डॉक्टर के पास जाना चाहिए :
हालांकि, यदि आप 35 वर्ष से अधिक उम्र की हैं या आपकी गर्भावस्था में किसी प्रकार का जोखिम है, तो आप आपको कई बार डॉक्टर से मिलना पड़ सकता है।
प्रसवपूर्व देखभाल के लिए डॉक्टर से पहली बार मिलने पर वे :
इसके तहत वे आपको किसी भी बदलाव के बारे में सलाह दे सकते हैं, जिससे आपकी गर्भावस्था सुरक्षित बनी रहे। गर्भावस्था में किसी भी नई चीज के सेवन या इस्तेमाल से पहले हमेशा अपने डॉक्टर से जांच करवाएं। इस दौरान वे कुछ टेस्ट भी कर सकते हैं या करवाने की सलाह से सकते हैं।
प्रसवपूर्व देखभाल के रूटीन चेकअप के दौरान डॉक्टर :
प्रसवपूर्व परीक्षण विभिन्न प्रक्रियाएं हैं जो सुनिश्चित करती हैं कि माँ और भ्रूण स्वस्थ हैं। कुछ प्रीनेटल जांचों से जन्म के संभावित दोष भी पता चल सकते हैं।
गर्भावस्था के दौरान प्रसवपूर्व परीक्षण बेहद ज़रूरी है। आपके डॉक्टर आपके प्रेगेंसी के निश्चित समय पर आपको प्रसवपूर्व परीक्षण का सुझाव दे सकते हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आप स्वस्थ हैं और आपका भ्रूण भी सामान्य रूप से विकसित हो रहा है। वे आपकी उम्र और अन्य जोखिम कारकों के आधार पर भी विशिष्ट परीक्षणों की सिफारिश कर सकते हैं। कुछ महिलाओं में समस्याएँ और जन्म दोषों का जोखिम अधिक होता है, आपके डॉक्टर आपकी स्थिति के हिसाब से आपको बताएँगे कि आपके लिए कौन से परीक्षण सही हो सकते हैं।
आपके और आपके बच्चे के स्वास्थ्य की जांच करने के लिए गर्भावस्था के दौरान कई प्रेगनेंसी टेस्ट किए जाते हैं। महिला गर्भवती है या नहीं इसकी पुष्टि के लिए सबसे पहले दो प्रेगनेंसी टेस्ट किए जाते हैं- यूरिन प्रेगनेंसी टेस्ट (Urine pregnancy test) और प्रेगनेंसी ब्लड टेस्ट (pregnancy blood test)
गर्भावस्था सुनिश्चित हो जाने के बाद, डॉक्टर से पहली मुलाक़ात पर निम्न टेस्ट किए जा सकते हैं :
आपकी आयु,व्यक्तिगत या पारिवारिक स्वास्थ्य इतिहास, धार्मिक पृष्ठभूमि (ethnic background) और नियमित परीक्षण के परिणामों के आधार पर अन्य परीक्षणों की पेशकश की जा सकती है। स्क्रीनिंग टेस्ट के परिणामों के आधार पर आपका डॉक्टर डायग्नोसस्टिक टेस्ट्स (diagnostic tests) का सुझाव दे सकते हैं। डायग्नोकस्टिक टेस्ट आपके या आपके बच्चे में स्वास्थ्य समस्याओं की पुष्टि करते हैं।
डॉक्टर द्वारा सुझाए गए अन्य टेस्ट्स निम्न हैं :
टेस्ट का नाम | यह क्या है | कैसे होता है |
---|---|---|
एमनियोसेंटेसिस (Amniocentesis | यह परीक्षण कुछ जन्म दोषों का निदान कर सकता है, जिनमें शामिल हैं: डाउन सिंड्रोम (down syndrome) सिस्टिक फाइब्रोसिस (cystic fibrosis) यह 14वें से 20वें हफ्ते के बीच किया जाता है। यह टेस्ट आनुवंशिक विकारों के लिए हाई रिस्क प्रेगनेंसी वाले कपल को सुझाया जा सकता है। यह पैटर्निटी टेस्टिंग के लिए डीएनए भी प्रदान करता है। कैसे होता है भ्रूण के आस-पास की थैली से एमनियोटिक द्रव (amniotic fluid ) और कोशिकाओं के छोटे से सैंपल को बाहर निकालने के लिए एक पतली सुई का उपयोग होता है। इसके बाद सैंपल को जांच के लिए लैब में भेजा जाता है। | भ्रूण के आस-पास की थैली से एमनियोटिक द्रव (amniotic fluid ) और कोशिकाओं के छोटे से सैंपल को बाहर निकालने के लिए एक पतली सुई का उपयोग होता है। इसके बाद सैंपल को जांच के लिए लैब में भेजा जाता है। |
बायोफिजिकल प्रोफाइल (Biophysical profile(BPP) | इस टेस्ट को, तीसरी तिमाही में बच्चे की सेहत की निगरानी करने के लिए किया जाता है। इसके साथ यह टेस्ट यह तय करने के लिए किया जाता है कि बच्चे को अर्लि डिलीवरी (early delivery) की जरूरत है या नहीं। | बीपीपी में एक नॉनस्ट्रेस टेस्ट के साथ एक अल्ट्रासाउंड परीक्षण भी शामिल है। बीपीपी बच्चे की सांस, मूवमेंट, मांसपेशियों की टोन, हृदय गति और एमनियोटिक द्रव की मात्रा की जांच करता है। |
कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (Chorionic villus sampling (CVS) | कुछ जन्म दोषों के निदान के लिए 10वें से 13वें सप्ताह में किया गया एक परीक्षण, जिसमें शामिल हैं: डाउन सिंड्रोम (down syndrome) सहित क्रोमोजोमल विकार (chromosomal disorders) आनुवंशिक विकार (Genetic disorders) जैसे कि सिस्टिक फाइब्रोसिस (cystic fibrosis) यह टेस्ट आनुवंशिक विकारों के लिए हाई रिस्क प्रेगनेंसी वाले कपल को सुझाया जा सकता है। यह भी पितृत्व परीक्षण के लिए डीएनए प्रदान करता है। | एक सुई के जरिए प्लेसेंटा की कोशिकाओं से एक छोटा सा सैंपल निकालकर परीक्षण किया जाता है। |
पहली तिमाही स्क्रीन (First trimester screen) | 11वें से 14वें सप्ताह में किया जाने वाला स्क्रीनिंग टेस्ट जिससे निम्न बीमारियों के जोखिम का पता लगाया जा सकता है : क्रोमोसोमल विकार सहित डाउन सिंड्रोम और ट्राइसॉमी 18 हृदय दोष जैसी अन्य समस्याएँ यह मल्टीपल बर्थ के बारे में भी बता सकता है। टेस्ट के रिजल्ट्स के आधार पर, आपके डॉक्टर विकार के निदान के लिए अन्य टेस्ट्स का सुझाव भी दे सकते हैं। | इस परीक्षण में एक रक्त परीक्षण और एक अल्ट्रासाउंड परीक्षण शामिल है जिसे न्यूक्लल ट्रांसलूसेंसी (nuchal translucency) स्क्रीनिंग कहा जाता है। ब्लड टेस्ट महिला के रक्त में कुछ पदार्थों के स्तर को मापता है। अल्ट्रासाउंड परीक्षण से बच्चे के गले के पीछे की मोटाई का पता लगाया जाता है। यह मां की उम्र के साथ, डॉक्टरों को भ्रूण के लिए जोखिम निर्धारित करने में मददगार है। |
ग्लूकोज चैलेंज स्क्रीनिंग (Glucose challenge screening) | गर्भकालीन मधुमेह के ख़तरे के जोखिम को निर्धारित करने के लिए 26वें से 28वें हफ्ते में की जाने वाली स्क्रीनिंग टेस्ट। परीक्षण के परिणामों के आधार पर, आपका डॉक्टर एक ग्लूकोज टॉलरेंस परीक्षण का सुझाव दे सकते हैं। | सबसे पहले डॉक्टर आपको एक विशेष मीठा पेय का सेवन करवाते हैं। हाई ब्लड लेवल के स्तर को देखने के लिए एक घंटे बाद रक्त का सैंपल लिया जाता है। |
ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (Glucose tolerance test) | गर्भकालीन मधुमेह के निदान के लिए यह परीक्षण 26वें से 28वें सप्ताह में किया जाता है। | आपके डॉक्टर आपको बताएँगे कि परीक्षण से कुछ दिन पहले क्या खाना चाहिए। फिर आप परीक्षण से 14 घंटे पहले सिवाय पानी के कुछ घूंट के अलावा कुछ भी नहीं खा सकते हैं। इसके बाद आपका रक्त आपके "फास्टिंग ब्लड ग्लूकोज लेवल" का परीक्षण करने के लिए तैयार है। फिर, आप एक मीठा पेय का पिएंगे। आपके शरीर में चीनी को कितनी अच्छी तरह से संसाधित किया जाता है, यह देखने के लिए आपके रक्त का तीन घंटे तक हर घंटे परीक्षण किया जाएगा। |
ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस संक्रमण (Group B streptococcus infection) | यह परीक्षण बैक्टीरिया को देखने के लिए 36वें से 37वें हफ्ते में किया जाता है जो नवजात शिशु में निमोनिया या गंभीर संक्रमण का कारण बन सकता है। | एक स्वैब (swab) का उपयोग आपकी योनि से कोशिकाओं और मलाशय का परीक्षण करने के लिए किया जाता है। |
मैटरनल सीरम स्क्रीन (एएफपी) (Maternal serum screen (AFP) | 15वें से 20वें हफ्ते में स्क्रीनिंग टेस्ट किया जाता है जिससे निम्न बीमारियों के जोखिम का पता लगाया जाता है : क्रोमोसोमल विकार (chromosomal disorders) सहित डाउन सिंड्रोम (down syndrome) और ट्राइसॉमी 18 (trisomy 18) न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट (neural tube defects) जैसे कि स्पाइना बिफिडा (spina bifida) परीक्षण के परिणामों के आधार पर, आपके डॉक्टर विकार का निदान करने के लिए अन्य परीक्षणों का सुझाव दे सकते हैं। | मां के रक्त में कुछ पदार्थों के स्तर को मापने के लिए रक्त लिया जाता है। |
नॉनस्ट्रेस टेस्ट (Nonstress test -NST) | यह परीक्षण आपके बच्चे के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए 28वें सप्ताह के बाद किया जाता है। यह भ्रूण के जटिल परिस्थिति के लक्षण दिखा सकता है, जैसे कि बच्चे को पर्याप्त ऑक्सीजन का न मिल पाना। | मां के पेट के चारों ओर एक बेल्ट लगाई जाती है ताकि बच्चे के हृदय की गति को मापा जा सके (बच्चे के मूवमेंट के अनुसार)। |
अल्ट्रासाउंड परीक्षण (Ultrasound exam) | अल्ट्रासाउंड किया जा सकता है। अल्ट्रासाउंड परीक्षण नियमित नहीं होता। लेकिन 18वें से 20वें हफ्ते के बीच अल्ट्रासाउंड परीक्षण होना सामान्य बात है। ये अल्ट्रासाउंड बच्चे के अंगों और शरीर की प्रणालियों की समस्याओं का पता लगाने के लिए किया जाता है, जिससे भ्रूण की आयु और उचित वृद्धि की पुष्टि हो सके। यह आपके बच्चे के लिंग को बताने में भी सक्षम हो सकता है। अल्ट्रासाउंड परीक्षण का उपयोग पहली तिमाही स्क्रीन और बायोफिज़िकल प्रोफाइल (बीपीपी) के हिस्से के रूप में भी किया जाता है। परीक्षा परिणामों के आधार पर, आपके डॉक्टर किसी समस्या का पता लगाने में मदद के लिए अन्य परीक्षण या अन्य प्रकार के अल्ट्रासाउंड का सुझाव दे सकते हैं। | अल्ट्रासाउंड ध्वनि तरंगों का उपयोग मॉनिटर पर आपके बच्चे की "तस्वीर" बनाने के लिए होता है। एक स्टैंडर्ड अल्ट्रासाउंड के साथ, आपके पेट पर एक जेल लगाया जाता है। आपके पेट के ऊपर एक विशेष उपकरण ले जाया जाता है, जो आपको और डॉक्टर को बच्चे को मॉनिटर पर देखने में मदद करता है। |
मूत्र परीक्षण (Urine test) | एक यूरिन सैंपल कई स्वास्थ्य समस्याओं के संकेतों की तलाश कर सकता है, जैसे: यूरिन ट्रैक्ट इंफेक्शन (Urinary tract infection) मधुमेह (Diabetes) प्रीक्लेम्पसिया (Preeclampsia) यदि आपके डॉक्टर को किसी समस्या का संदेह है, तो सैंपल को अधिक गहराई से परीक्षण के लिए एक प्रयोगशाला में भेजा जा सकता है। | आप एक साफ प्लास्टिक के कप में मिडस्ट्रीम यूरिन का एक छोटा सा नमूना एकत्र करेंगे। सैंपल में डूबे परीक्षण स्ट्रिप्स यूरिन में मौजूद कुछ पदार्थों की तलाश करते हैं। इस सैंपल को माइक्रोस्कोप (microscope) से भी देखा जा सकता है। |
अल्ट्रासाउंड को सोनोग्राम भी कहा जाता है। यह आपके डॉक्टर को पता लगाने में मदद करते हैं कि क्या भ्रूण सामान्य रूप से विकसित हो रहे हैं। गर्भावस्था के दौरान किसी भी समय अल्ट्रासाउंड किया जा सकता है। अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट के आधार पर डॉक्टर समस्या का पता लगाने में मदद के लिए कई और परीक्षण या अन्य अल्ट्रासाउंड का सुझाव दे सकते हैं।
प्रसवपूर्व देखभाल से पहले अल्ट्रासाउंड का महत्व :
प्रसवपूर्व देखभाल से पहले अल्ट्रासाउंड की फ्रिक्योंसी :
गर्भावस्था के दौरान कई शारीरिक बदलाव होते हैं और इस दौरान महिलाएं बहुत से हार्मोनल परिवर्तनों से भी गुजरती हैं।
गर्भावस्था के दौरान होने वाले शारीरिक बदलाव :
गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याएं हैं :
गर्भावस्था में अधिक आरामदायक महसूस करने के लिए आप अपने जीवनशैली में कुछ बदलाव कर सकती हैं। जैसे - अपने आहार में बदलाव और हल्के व्यायाम करना। आपके डॉक्टर आपको गर्भावस्था के दौरान बेहतर महसूस करने के लिए सुझाव देंगे, उन पर अमल करें।
गर्भावस्था के दौरान कई तरह के लक्षण नज़र आ सकते हैं, मगर इस दौरान महसूस होने वाले कुछ लक्षण गर्भावस्था संबंधी जटिलताओं के संकेत हो सकते हैं। निम्नलिखित लक्षणों के नज़र आने के बाद आपको तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
लक्षण जिन्हें नोटिस करने के बाद डॉक्टर से करें संपर्क :
गर्भावस्था के 28वें हफ्ते के बाद, अपने बच्चे के मूवमेंट पर नज़र रखें, यह आपको नोटिस करने में मदद करेगा कि आपका बच्चा सामान्य रूप से मूवमेंट कर रहा है या नहीं। यदि बच्चे की गतिविधि सामान्य से कम है या बिलकुल नहीं है तो यह इस बात का संकेत हो सकता है कि बच्चा ख़तरे में है।
भ्रूण की गतिविधि की निगरानी करने का सबसे आसान तरीका है भ्रूण की गतिविधियों को नोट करना। ज्यादातर महिलाएं लगभग 20 मिनट के अंदर 10 बार भ्रूण की गतिविधि को नोटिस करती हैं। आप बच्चे की 10 गतिविधियों को नोट करें। शाम के समय अपने बच्चे की गतिविधियों को गिने। शाम का समय ऐसा होता है जब भ्रूण सबसे अधिक सक्रिय होता है। अगर आपको अपने बच्चे की गतिविधि से तकलीफ़ हो रही है तो लेट जाएं। ऐसा बहुत ही कम होता है जब महिलाएं भ्रूण के सबसे अधिक सक्रिय होने के समय में, दो घंटे के अंदर 10 से कम मोमेंट्स को नोट करें। ऐसा होने पर भ्रूण को किसी तरह की परेशानी हो सकती है, बेहतर होगा डॉक्टर से संपर्क करें।
जिस गर्भावस्था में जटिलताओं की अधिक संभावना होती है उसे हाई रिस्क प्रेगनेंसी कहा जाता है। हाई रिस्क प्रेगनेंसी वाली महिलाओं को बार-बार प्रसवपूर्व देखभाल और कई बार विशेष रूप से प्रशिक्षित चिकित्सक की आवश्यकता होती है। यदि आपकी गर्भावस्था को उच्च जोखिम माना जाता है, तो आप अपने अजन्मे बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हो सकती हैं। हाई रिस्क प्रेगेंसी कई कारणों से हो सकती है। चलिए जानते हैं किन कारणों से हो सकती है हाई रिस्क प्रेगनेंसी।
हाई रिस्क प्रेगेंसी के कारण निम्न हैं :
हाई रिस्क प्रेगेंसी की स्थिति में अपनी चिंताओं व परेशानियों को अपने डॉक्टर से साझा करें। आपके डॉक्टर आपके जोखिमों और एक वास्तविक समस्या की संभावनाओं के बारे में आपको पूर्ण जानकारी देंगे, जिससे आप चिंतामुक्त हो सकती हैं। इसके अलावा, आप अपने डॉक्टर की सलाह का पालन ज़रूर करें।
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को खास ध्यान रखना चाहिए। प्रेगनेंसी के समय सावधानी गर्भावस्था संबंधी जटिलताओं के जोखिम को कम कर सकती हैं।
प्रेगनेंसी के दौरान बरती जाने वाली सावधानियाँ :
गर्भावस्था के सफर में महिलाओं को कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
गर्भावस्था के दौरान होने वाली स्वास्थ्य-संबंधी समस्याएँ निम्न हैं :
औसतन एंटिनेटल केयर का खर्च 10,000 से 15,000 रुपये के बीच आता है। हालांकि, प्रसवपूर्व देखरेख का खर्च कई चीजों पर निर्भर करता है जैसे किस शहर में और किस हॉस्पिटल में प्रसवपूर्व देखरेख की जा रही है, कौन-कौन सी सर्विस ली जा रही हैं, एंटिनेटल केयर लागत में डॉक्टर की विजिट कितनी बार की गयी हैं, दवाएं और विभिन्न तरह के परीक्षण का क्या खर्च आता है।
प्रसवपूर्व देखरेख में आप डॉक्टर के 13-14 विजिट कर सकती हैं। लेकिन अगर यदि आपकी हाई रिस्क प्रेगनेंसी है तो इससे ज्यादा बार भी डॉक्टर के विजिट हो सकते हैं। ठीक ऐसे ही सामान्य सप्लीमेंट्स के अलावा गर्भावस्था की समस्याओं से निजात पाने की दवाएं, गंभीर बीमारी या हाई रिस्क प्रेगनेंसी होने पर दी जाने वाली दवाएं, रूबेला जैसे गंभीर बीमारियों में दी जाने वाली वैक्सीनेशन के कारण भी प्रसव से पहले देखरेख की लागत प्रभावित हो सकती है।
इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान मां और बच्चे की सेहत जांचने के लिए विभिन्न तरह के ब्लड टेस्ट, यूरिन टेस्ट, अल्ट्रासाउंड और अन्य जांच की जाती है, जिससे भी प्रसवपूर्व देखरेख की लागत घट या बढ़ सकती है।
एंटिनेटल केयर स्पेशलिस्ट डॉक्टर चुनते वक़्त आपको बेहद सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि आपके द्वारा चुने गए डॉक्टर आने वाले नौ महीनों तक आपके गर्भावस्था की जांच करेंगे साथ ही आपके और आपके शिशु की सेहत का भी ख़्याल रखेंगे।
प्रसवपूर्व देखरेख के लिए चिकित्सक चुनते वक़्त निम्न बातों को ध्यान में रखें :
प्रसवपूर्व देखरेख के लिए अस्पताल बहुत हैं, ऐसे में आपको एंटिनेटल केयर हॉस्पिटल के चयन के दौरान बहुत सावधानी रखनी होगी। प्रिनैटेल केयर के लिए सर्वश्रेष्ठ हॉस्पिटल के चुनाव के वक़्त सबसे पहले ध्यान दें कि आपके द्वारा चुने गए अस्पताल की प्रतिष्ठा अच्छी हो। इसके अलावा यह भी ध्यान दें कि अस्पताल में स्टाफ सपोर्ट की सुविधा उपलब्ध है या नहीं जैसे न्यूट्रिशनिस्ट (nutritionist), डाइटीशियन (dietician), योगा व एक्सरसाइज ट्रेनर्स (yoga and exercise trainers)। साथ ही यह भी सुनिश्चित करें अस्पताल में इमरजेंसी यूनिट की सुविधा उपलब्ध हो, ताकि किसी भी इमरजेंसी की स्थिति में आपको किसी परेशानी का सामना न करना पड़े।
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