पोस्टपार्टम डिप्रेशन : कारण, लक्षण, और उपचार
Postpartum Depression in hindi
Delivery ke baad hone wala depression ki jankari in hindi
Introduction

हर महिला के लिए शिशु का जन्म बहुत ही खुशी का वक़्त होता है, लेकिन खुशी के साथ-साथ ये वक़्त हार्मोनल बदलाव (hormonal changes), नई जिम्मेदारियां, चिंता और तनाव का भी होता हैं।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन (पी.पी.डी.) यानि कि प्रसवोत्तर अवसाद बच्चे को लेकर तनाव लेने और हार्मोनल बदलाव के कारण हो सकता है।
डिलीवरी के बाद डिप्रेशन (अवसाद) की वज़ह से चिंता और दुःख का अहसास इतना अधिक बढ़ जाता है कि महिला खुद का और अपने बच्चे का ख्याल भी सही से नहीं रख पाती है।
प्रसवोत्तर अवसाद एक प्रकार की मानसिक अवस्था हैं, जो बच्चों के जन्म के बाद माँ को होती हैं। ये बच्चे के जन्म के बाद से एक साल के अंदर तक कभी भी हो सकती है।
प्रसवोत्तर अवसाद कोई बीमारी या कमज़ोरी नहीं है। ये बच्चे को जन्म देने के तनाव, उसकी ज़िम्मेदारी की चिंता और हारमोंस में बदलाव से होता है। इसे समय पर उपचार करके ठीक किया जा सकता है।
इस लेख़ में
डिलीवरी के बाद डिप्रेशन (अवसाद) के प्रकार
Types of Postpartum depression in hindi
Delivery ke baad depression (avsaad) ke prakar in hindi
सामान्य रूप से डिप्रेशन के स्तर और समय के आधार पर प्रसवोत्तर अवसाद को तीन मुख्य अवस्थाओं में बांटा जा सकता है:
- बेबी ब्लूज (Baby blues)
अधिकतर महिलाओं को शिशु के जन्म के बाद आमतौर पर पहले दो से तीन दिनों के भीतर बेबी से जुडी कई चिंताएं होने लगती है, जिसे "बेबी ब्लूज़" कहते हैं।
बेबी ब्लूज लगभग दो सप्ताह तक हो सकता है।
इस अवस्था को आमतौर पर प्रारंभिक अवसाद कहा जाता है और लगभग 80 प्रतिशत महिलाएं बेबी ब्लूज का शिकार होती है।
ये ज्यादा चिंता करने लायक नहीं हैं। इसके इलाज की आवश्यकता भी नहीं होती है और ये बिना किसी इलाज के कुछ हफ्तों में खुद ही ठीक हो जाता है। - प्रसवोत्तर अवसाद (Postpartum depression)
ये पोस्टपार्टम स्ट्रेस (postpartum stress) की वो अवस्था है जिसके बारे में हम यहां बात कर रहें हैं।
ये अवसाद बहुत ही गंभीर और प्रसव के बाद कई हफ्तों से लेकर एक साल तक चलने वाला अवसाद है।
हर दस में 2 महिलाएं इस प्रसवोत्तर अवसाद से पीड़ित हैं। ये बेबी ब्लूज से काफी गंभीर और लम्बे समय तक चलने वाला अवसाद है।
इसकी वज़ह से महिलाओं को मूड स्विंग्स, तनाव और नींद की गंभीर समस्या होने लगती है। - पोस्टपार्टम साईंकोसिस (Postpartum psychosis)
कई बार चिंता और तनाव की बहुत ख़राब परिस्थितियों में और इलाज के अभाव में पोस्टपार्टम डिप्रेशन साल भर से भी लम्बे समय तक रहता है और पोस्टपार्टम साईंकोसिस का रूप ले लेता है।
पोस्टपार्टम साईंकोसिस एक तरह का मेंटल डिसआर्डर (Mental disorder) है जिसका इलाज बेहद मुश्किल है।
इससे ग्रसित मरीज का इलाज करने के लिए उसे लम्बे समय तक पुनर्वास केंद्र (rehabilitation center) में भी रखना पड सकता है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण
Symptoms of Postpartum depression in hindi
Postpartum depression or baccha paida hone ke baad wala depression ke lakshan in hindi
पोस्टपार्टम अवसाद के लक्षण कई होते हैं, जिनकी मदद से महिलाएं इसकी समय पर पहचान करके अपना बचाव कर सकती हैं।
- असुरक्षा या असहाय होने का भाव मन में आना।
- मन हमेशा निराश और नकारात्मक विचारों (negative thoughts) से भरा रहना।
- किसी भी काम को करने में मन नहीं लगना।
- बच्चे की परवरिश और सुरक्षा को लेकर बेवज़ह की चिंता होना।
- अचानक से भूख बेहद कम या ज्यादा लगना।
- मूड स्विंग्स (mood swings) बहुत अधिक होना।
- चिंता और बेचैनी के कारण बार बार घबराहट के दौरे (panic attacks) पड़ना।
- किसी भी काम में मन नहीं लगना और याद्दाश्त में कमी होना।
- खुद को किसी काम के लायक ना समझना ।
- सेक्स की इच्छा कम हो जाना।
- शरीर में एनर्जी कम हो जाना।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के कारण
Causes of Postpartum depression in hindi
Postpartum depression or bache paida karne ke baad hone wale depression ke karan in hindi
प्रसवोत्तर अवसाद के कारण बहुत सारे हो सकते है, उनमे से कुछ मुख्य कारणों को यहां पर बताया गया है:
- बच्चों के जन्म के बाद महिलाओं में एस्ट्रोजन (Estrogen) और प्रोजेस्ट्रोन (Progesterone) हार्मोन का स्तर अचानक से बदलना।
- थायराइड हार्मोन (Thyroid hormone) के स्तर में कमी।
- बच्चे के जन्म के बाद पर्याप्त नींद नहीं मिल पाना।
- बच्चे के जन्म के बाद खान-पान का ध्यान न रखना।
- बच्चे के जन्म के समय कुछ कॉम्पलेकेशन्स (complications) का आना।
- न्यूक्लिअर फैमिली (single family) में बच्चे के जन्म के बाद घर के काम-काज में पति का समर्थन ना मिलना।
- पहले कभी अवसादग्रस्त रहना।
- बच्चे के जन्म के बाद आर्थिक जिम्मेदारियों का आना।
- बेटे के जन्म की इच्छा करना, मगर बेटी का जन्म होना।
- नौकरीपेशा महिलाओं के लिए बच्चे के जन्म के बाद ऑफिस और घर में सामंजस्य (adjustment) बनाये रखना।
- बच्चे का जन्म समय से पहले होने से उसका कमजोर रह जाना।
- बच्चे का जन्म होने पर अपनी पुरानी यादों को याद करके दुःखी हो जाना।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन की पहचान करना
Diagnosis of Postpartum depression in hindi
delivery ke baad avsad ki pehchaan karna in hindi
जब कोई महिला अवसाद की वजह से डॉक्टर से मिलती है, तो डॉक्टर का पहला काम यह सुनिश्चित करना होता है कि महिला बेबी ब्लूज (Baby blues) से मुक्त हो चुकी है या नहीं।
ये सुनिश्चित करने के लिए डॉक्टर नीचे दिए गए कुछ डायग्नोसिस (diagnosis) के तरीके अपनाते हैं।
- डॉक्टर महिला से कुछ सवाल करते हैं, जैसे कि-
- किस तरह के विचार आते हैं?
- घर का माहौल कैसा है?
- रोज कितने घंटे की नींद ले रही है?
- किसी वज़ह से कोई चिंता है?
- पति- पत्नी के संबंध कैसे हैं?
- आपस में सेक्स लाइफ कैसी चल रही है?
- डिलीवरी के बाद डिप्रेशन (अवसाद) से जुड़े लक्षणों के बारे में भी सवाल किए जाते हैं। इन सवालों के जवाब के आधार पर ही तय होता है कि महिला डिलीवरी के बाद डिप्रेशन की शिकार है या नहीं। अगर सिर्फ़ तीन सवालों का जवाब ‘हाँ’ होता है तो बहुत ही सामान्य अवसाद रहता है। इसके बाद जितने अधिक सवालों के जवाब ‘हाँ’ होंगे, डिलीवरी के बाद अवसाद की गंभीरता उतनी ही बढ़ती जाएगी।
- महिला का ब्लड टेस्ट किया जाता है ताकि शरीर में एस्ट्रोजन (Estrogen), प्रोजेस्ट्रोन (Progesterone) और थायराइड (thyroid) स्तर का पता लगाया जा सके। इनके स्तर का का कम-ज्यादा होना, अवसाद की स्थिति को बताता है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन का इलाज और बचाव
Treatment and prevention of Postpartum depression in hindi
Postpartum depression ka ilaj aur bachav in hindi
पोस्टपार्टम डिप्रेशन से ग्रसित महिलाओं का इलाज और बचाव नीचे दिए गए तरीकों से किया जा सकता है।
- काउंसलर (Counsellor) की मदद से थैरेपी
बातचीत की थैरेपी से प्रसवोत्तर अवसाद का उपचार किया जा सकता है। महिला के पति, उसके मित्र या परिजन भी बातचीत करके उसे इस अवसाद से उबरने में मदद कर सकते हैं।
मगर जब ये अवसाद बढ़ जाता है तो सलाहकार (काउंसलर) की मदद ली जाती है।
काउंसलर अवसाद ग्रस्त महिला का कॉग्निटिव बेहेविरोल थैरेपी (Cognitive behavioral therapy - CBT) या इंटरपर्सनल थैरेपी (Interpersonal therapy - IPT) के द्वारा इलाज करते हैं।
काउंसेलर महिला के तनाव को कम कर, उनके खोये हुए आत्मविश्वास को फिर से वापस लेन में मदद करता है। - एन्टीडिप्रेसेंट्स (Antidepressants)
अगर महिला बहुत ज्यादा अवासद में हैं तो थैरेपी के साथ साथ एन्टी-डिप्रेशन की दवाइयां भी दी जाती है।
इन दवाइयों को लेने से शरीर में हार्मोन का स्तर सामान्य होता है और कुछ दिनों में ही महिला के व्यवहार में सुधार होना शुरू हो जाता है। - पौष्टिक भोजन (Healthy food)
बच्चे के जन्म के बाद मां को पौष्टिक भोजन की बहुत जरूरत होती है ताकि शिशु हष्ट पुष्ट और स्वस्थ रहे।
ऐसे में ये जरूरी है कि आप पौष्टिक भोजन ले और शरीर को आवश्यक विटामिन और प्रोटीन (vitamin and protein) की मात्रा को पूरा करें। - पर्याप्त नींद (Enough sleep)
बच्चे के जन्म के बाद नींद की समस्या बहुत रहती है। ऐसे में जरूरी है कि बच्चे के सोने और जागने के अनुसार अपने सोने का समय एडजस्ट (adjust) करें और पूरी नींद ले। - एक्सरसाइज और योगा (Exercise and Yoga)
महिलाएं अक्सर अपने बॉडी की शेप का बहुत ध्यान रखती हैं।
प्रेगनेंसी के समय महिलाओं का वज़न बढ़ जाता है और इसे लेकर भी वो अवसाद में जा सकती है।
ऐसे में जरूरी है कि बच्चे के जन्म के कुछ समय बाद किसी अच्छे योगा टीचर या फिटनेस ट्रेनर की देखरेख में आप एक्सरसाइज शुरू करें।
हालांकि, कोई भी एक्सरसाइज करने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रुर सलाह लें। - परिजनों या पड़ोसियों की मदद (Help from relatives and neighbors)
अगर आप और आपके पति अकेले रहते हैं तो बच्चे के जन्म के बाद अपने किसी रिश्तेदार को बुला ले।
आपके घर के काम काज वो मदद कर सकते हैं। अगर रिश्तेदार नहीं आ सकते तो आप अपने पड़ोसियों की भी मदद ले सकती हैं। - पति के साथ समय बितायें (Spend time with husband)
बच्चे के जन्म के बाद पति-पत्नी को एक दूसरे के साथ वक्त बहुत कम मिल पाता है। ऐसे में कोशिश करें कि जब भी समय मिले पति के साथ कुछ समय बताएं, ताकि आप उनसे अपनी चिंता या कोई भी परेशानी साझा कर सकें।
इससे तनाव और अवसाद का स्तर कम होता है।
सारांश
बच्चे के पैदा होने के बाद उसके प्रति माँ की काफी जिम्मेदारियां आ जाती है किसी भी वजह से अगर माँ का मानसिक स्वास्थ्य ठीक न हो तो वो इन सब जिम्मेदारियों का बोझ नहीं उठा पाएगी।
गर्भावस्था में अवसाद के कारण माँ एवं शिशु दोनों को ही काफी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।
कई बार अवसाद की वजह से माँ के भीतर आत्महत्या, बच्चे का ख्याल न रखने या बच्चे से उतना लगाव न रहने जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।
इसीलिए समय रहते इसका उपचार जरूरी है ताकि माँ और बच्चा दोनों ही सुरक्षित तथा सकुशल रहें।
क्या यह लेख सहायक था? हां कहने के लिए दिल पर क्लिक करें
आर्टिकल की आख़िरी अपडेट तिथि: : 04 May 2020