कोरियोनिक विली सैंपलिंग/सीवीएस टेस्ट की प्रक्रिया, लाभ व जोखिम

Procedure, benefits and risks of chorionic villus sampling (CVS) in hindi

chorionic villus sampling CVS test in hindi


एक नज़र

  • भ्रूण में आनुवंशिक असामान्यताओं का पता लगाने के लिए सीवीएस टेस्ट किया जाता है।
  • परिवार में किसी बीमारी की मेडिकल हिस्ट्री होने पर सीवीएस टेस्ट जरूरी होता है।
  • सीवीएस टेस्ट में दो तरीकों से सैंपल लिया जाता है - ट्रांससर्विकल (Transcervical) और ट्रांसएब्डोमिनल (Transabdominal)।
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Introduction

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प्रेगनेंसी के दौरान, बच्चे की गर्भ में स्थिति, बच्चे के शरीर में पूरी तरह से कोशिकाओं की मौजूदगी और बच्चे के क्रोमोसोम का पता लगाने के लिए किया जाने वाला टेस्ट है - कोरियोनिक विली सैंपलिंग - सीवीएस टेस्ट।

सीवीएस टेस्ट एक डायग्नोस्टिक (diagnostic) परीक्षण होता है जो भ्रूण में पायी जाने वाली असामान्यताओं, बच्चे में मौजूद गुणों या किसी अनुवांशिक बीमारी या कमी के बारे में जानने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट के जरिए समय से पहले ही गर्भ में पल रहे भ्रूण में मौजूद किसी भी प्रकार की कमी का पता लगाकर उसका इलाज किया जा सकता है। आइये जानते हैं सीवीएस टेस्ट कैसे किया जाता है, इसके लाभ और जोखिम क्या हैं।

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इस लेख़ में

 

कोरियोनिक विली सैंपलिंग(सीवीएस) टेस्ट कैसे किया जाता है?

How Chorionic villus sampling(CVS) test is performed in hindi

Chorionic villus sampling test kaise kiya jata hai in hindi

सीवीएस के अंतर्गत विशेषज्ञों द्वारा दो तरीके बताए गए हैं।

सीवीएस टेस्ट में दो तरीकों से सैंपल लिए जाते हैं - ट्रांससर्विकल (transcervical) और ट्रांसएब्डोमिनल (transabdominal)।

  • ट्रांससर्विकल (Transcervical)

इस प्रक्रिया में भ्रूण को अल्ट्रासाउंड पर मॉनिटर किया जाता है और उसी दौरान एक पतली कैथेटर (catheter) को गर्भाशय ग्रीवा (cervix) के माध्यम से प्लेसेंटा (placenta) तक पहुंचाया जाता है।

कोरियोनिक विली सेल्स को (chorionic villi cells) को कैथेटर में सक्शन किया जाता है।

सीवीएस को करने का यह सबसे आम तरीका है।

  • ट्रांसएब्डोमिनल (Transabdominal)

इस प्रक्रिया में भ्रूण को अल्ट्रासाउंड पर मॉनिटर किया जाता है और उसी दौरान एक पतली लम्बी सुई को पेट के माध्यम से प्लेसेंटा तक पहुंचाया जाता है।

जब सुई टिश्यू ले लेती है तो इसे बाहर निकाल लिया जाता हैं।

यह प्रक्रिया एमनियोसेंटेसिस प्रक्रिया की तरह होती है।

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कोरियोनिक विली सैंपलिंग - सीवीएस टेस्ट कब किया जाता है?

When is Chorionic villus sampling is performed in hindi

Chorionic villus sampling test kab kiya jata hai in hindi

सीवीएस टेस्ट को एमनियोसेंटेसिस टेस्ट से पहले किया जाता है।

सीवीएस टेस्ट करने के लिए गर्भावस्था के 10वें से 13वें हफ्ते तक इंतजार किया जाता है ताकि भ्रूण कोशिकाओं का पूरी तरह से विकास हो सकें।

सीवीएस टेस्ट से अनुवांशिक विकार की जांच के लिए भ्रूण की कोशिकाओं का पूरी तरह से विकसित होना जरूरी होता है।

गर्भ में पल रहे बच्चे में कोशिकाओं के पूरी तरह से विकसित होने के बाद ही अनुवांशिक कारणों का पूरी तरह से पता लगाया जा सकता है।

डॉक्टर सीवीएस टेस्ट को आखिरी बार पीरियड्स आने के 10वें से 12वें हफ्ते बाद करवाने की सलाह देते हैं।

और पढ़ें:30 की उम्र के बाद गर्भावस्था के जोखिम क्या हैं ?
 

कोरियोनिक विली सैंपलिंग - सीवीएस टेस्ट के परिणाम क्या बताते हैं?

What do the results of Chorionic villus sampling test indicate ?in hindi

Chorionic villus sampling ke parinam kya batate hai in hindi

सीवीएस टेस्ट करने से पहले परिवार के सभी सदस्यों की मेडिकल हिस्ट्री नोट की जाती है।

इस मेडिकल हिस्ट्री और टेस्ट के परिणाम के आधार पर यदि बच्चे में कोई परेशानी या फिर कोई अनुवांशिक विकार पाया जाता है, तो समय पर इसका इलाज शुरु कर दिया जाता है।

कोरियोनिक विली सैंपलिंग - सीवीएस टेस्ट के जरिये क्रमोसोम असामान्यताओं (chromosome abnormalities) और आनुवंशिक विकारों (genetic disorders) का पता चलता है।

यह टेस्ट एमनियोसेंटेसिस टेस्ट से अलग होता है क्योंकि इसके जरिये न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स (neural tube defects) का पता नहीं चलता है।

कोरियोनिक विली सैंपलिंग/सीवीएस टेस्ट के जरिये आने वाले परिणाम निम्न हैं :

  • क्रोमोसोम असामान्यताओं (Chromosome abnormalities)

सीवीएस टेस्ट, टे-सैक्च बीमारी (Tay-Sachs disease) और सिकल सेल एनीमिया (sickle cell anemia) की पहचान करने में मदद कर सकता है।

क्रोमोसोम असामान्यताओं (chromosomal defects) के निदान में सीवीएस को 98% सटीक माना जाता है।

यह प्रक्रिया भ्रूण के लिंग की पहचान भी करती है, इसलिए यह उन विकारों की पहचान कर सकता है जो एक लिंग से जुड़े होते हैं जैसे - कुछ विशेष प्रकार की मांसपेशी दुर्विकास (muscular dystrophy)।

इस प्रकार का विकार पुरुषों में सबसे अधिक होता है।

क्रोमोसोम असामान्यताओं में डाउन सिंड्रोम (down syndrome) या ट्राईसोमी 21 (trisomy 21) सबसे आम है।

सीवीएस टेस्ट के जरिये इनका पता लगाया जा सकता है।

  • आनुवंशिक विकारों (Genetic disorders)

आनुवंशिक विकारों में सिस्टिक फाइब्रोसिस (cystic fibrosis) जैसे विकार शामिल हैं।

  • पेटर्निटी टेस्ट (Paternity test)

कोरियोनिक विली सैंपलिंग से पेटर्निटी टेस्ट के परिणाम भी जाने जाते हैं।

डिलीवरी से पहले पितृत्व परीक्षण के लिए संभावित पिता से डीएनए (DNA) लिया जाता है, जिसे कोरियोनिक विली सैंपलिंग के द्वारा शिशु से लिए गए डीएनए से मैच किया जाता है।

  • अन्य विकार (Other disorder)

सीवीएस के जरिये अन्य विकारों का भी पता चल सकता है जैसे - मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी (muscular dystrophy)।

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कोरियोनिक विली सैंपलिंग टेस्ट(सीवीएस) के जोखिम और दुष्प्रभाव क्या हैं ?

What are the risks and side-effects of Chorionic villus sampling test in hindi

Maa ya bachche ke liye Chorionic villus sampling test ke jokhim aur dushparinam kya hai in hindi

सीवीएस टेस्ट एक सुरक्षित प्रक्रिया होती है क्योंकि यह एक इनवेसिव डायग्नोस्टिक टेस्ट (invasive diagnostic test) है, जो भ्रूण में होने वाले संभावित विकारों की जानकारी देकर होने वाले ख़तरे को कम करता है।

एक शोध के अनुसार, सीवीएस टेस्ट का संभावित जोखिम गर्भपात होता है।

हांलाकि गर्भपात के ख़तरे का अनुपात 100 में से 1 महिला का है।

गर्भवती मां व भ्रूण पर कोरियोनिक विली सैंपलिंग के जोखिम और दुष्प्रभाव निम्न हैं :

  • गर्भपात (Miscarriage)

इस टेस्ट को करने का सही समय 10वें हफ्ते से लेकर 13वें हफ्ते के बीच में होता है और यदि इस टेस्ट को समय से पहले किया जाए तो गर्भपात जैसी समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।

इस टेस्ट में दो से तीन प्रतिशत तक गर्भपात का जोखिम रहता है।

आपको बता दें कि एमनियोसेंटेसिस की तुलना में सीवीएस टेस्ट से गर्भपात की दर थोड़ी अधिक होती है।

  • गलत परिणाम (Wrong results)

कभी-कभी ऐसा भी होता है कि इस टेस्ट के जरिए आने वाले परिणाम गलत भी हो सकते हैं।

जब भ्रूण का उचित विकास नहीं हो पाता है और कोशिकाएं पूरी तरह विकसित नहीं होती हैं तो टेस्ट के परिणाम गलत भी आ सकते हैं।

  • भ्रूण को चोट लगना (Risk for embryo)

जब समय से पहले ही गर्भ में पल रहे भ्रूण का यह टेस्ट किया जाता है तो भ्रूण के पूरी तरह से विकसित ना होने की वजह से टेस्ट के दौरान भ्रूण को चोट भी लग सकती है।

  • अन्य दुष्प्रभाव (Other side-effects)

इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद महिला को कुछ अन्य दुष्प्रभावों का भी अनुभव हो सकता है जिनमें संक्रमण, ऐंठन होना, द्रव का रिसाव होना, सुई से प्रभावित जगह पर जलन होना शामिल है।

और पढ़ें:अल्फा-फेटोप्रोटीन टेस्ट क्या है और क्यों पड़ती है इसकी ज़रूरत
 

निष्कर्ष

Conclusionin hindi

Nishkarsh

कोरियोनिक विली सैंपलिंग/सीवीएस टेस्ट एक सुरक्षित प्रक्रिया होती है लेकिन इस टेस्ट को करवाने से पहले डॉक्टर से इसके जोखिम और फ़ायदों के बारे में चर्चा करना आवश्यक होता है।

आपके डॉक्टर आपको इसके परिणाम, लाभ, प्रक्रिया और होने वाले जोखिम के बारे में बता सकते हैं।

टेस्ट के बाद अगर आपको कोई स्वास्थ्य समस्या आती है तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

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आर्टिकल की आख़िरी अपडेट तिथि: : 02 Jun 2020

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