प्रसवपूर्व अनुवांशिक परिक्षण
Genetic testing before getting pregnant in hindi
Garbh Dharan karne se pehle genetic test in hindi
एक नज़र
- अनुवांशिक टेस्ट के सकारात्मक परिणाम शिशु में वंशानुगत बीमारी होने की संभावना को ज़ाहिर करते हैं।
- प्रसव पूर्व अनुवांशिक परीक्षण दो प्रकार से किये जा सकते हैं और यह कई प्रकार के होते हैं।
- अनुवांशिक परीक्षण करवाने से पहले परामर्शदाता से पूरी जानकारी प्राप्त करना अनिवार्य है।
Introduction

माता-पिता बनने से पहले प्री-प्रेगनेंसी प्लानिंग के समय, महिला और उसके साथी को चिकित्सक द्वारा कई तरह के परीक्षण करवाने की सलाह दी जाती है।
पहली नज़र में देखने पर यह सभी टेस्ट थोड़े चिंतित कर सकते हैं।
लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी है कि भावी माँ-बाप शारीरिक रूप से आने वाले नए मेहमान के लिए पूरी तरह तैयार हों ताकि शिशु के स्वास्थ्य पर किसी प्रकार का बुरा असर नहीं पड़े।
इसमें कुछ ध्यान रखने योग्य बातें है वजन, व्यायाम , संक्रमण से बचाव, पर्यावरण के ख़तरों से बचाव, संतुलित आहार, धूम्रपान या मदिरापान से दूर रहना आदि।
इसके साथ एक परीक्षण पर थोड़ा ज्यादा ध्यान देने की ज़रुरत होती है और वह मेडिकल टेस्ट, अनुवांशिक परीक्षण यानि जेनेटिक टेस्ट (genetic test)।
इस लेख के माध्यम से इस परीक्षण के बारे में आवश्यक जानकारी देने की कोशिश की गयी है।
इस लेख़ में
क्या होता है अनुवांशिक परिक्षण?
What is genetic testing? in hindi
Kya hota hai genetic test in hindi
अनुवांशिक परीक्षण प्रक्रिया में भावी माता-पिता का खून लिया जाता है।
जिसके परीक्षण के माध्यम से अनुवांशिक या वंशानुगत स्वास्थ्य समस्याओं का पता लगाया जाता है जो आने वाली पीढ़ियों को स्थानांतरित हो सकती है।
यह जानकारी स्वास्थ्य विशेषज्ञ माता के स्वास्थ्य, गर्भधारण में संभावित समस्याओं और आने वाले बच्चे के स्वास्थ्य के बारे में निर्णय लेने में मदद करती है।
अधिकतर वंशानुगत विकारों में गर्भ में पल रहे शिशु को वह विकार तभी होता है जब दोनों माँ बाप में वह विकार पाया जाता है।
बच्चों में माँ बाप से आने वाले वंशानुगत विकार का प्रतिशत कुछ इस प्रकार है :-
- ऑटोसोमल डोमिनेंट इनहेरिटेंस (autosomal dominant inheritance) - होने वाले शिशु में उत्परिवर्तित जीन (mutated gene) पारित होने की 50% संभावना
- ऑटोसोमल रिसेसिव इनहेरिटेंस (autosomal recessive inheritance) - होने वाले शिशु में उत्परिवर्तित जीन (mutated gene) पारित होने की 25% संभावना
- X जीन से जुड़ी डोमिनेंट इनहेरिटेंस (X-linked dominant inheritance) - होने वाले शिशु में उत्परिवर्तित जीन (mutated gene) पारित होने की 50% संभावना
- X जीन से जुड़ी रिसेसिव इनहेरिटेंस (X-linked recessive inheritance) - होने वाले शिशु में उत्परिवर्तित जीन (mutuated gene) पारित होने की 50% संभावना
- Y जीन से जुड़ी इनहेरिटेंस (Y-linked inheritance) - उत्परिवर्तित जीन (mutated gene) हर पुरुष शिशु में पारित होता है।
आमतौर पर तीन प्रकार की वंशानुगत बीमारियाँ देखी जाती हैं :-
- सिंगल जीन डिसऑर्डर (single gene disorders) जिसमें सिर्फ एक ही जीन पर असर पड़ता है।
- जटिल जीन डिसऑर्डर (complex gene disorders) जिसमें दो से ज्यादा जीन पर असर पड़ता है।
- क्रोमोजोमल डिसऑर्डर (chromosomal disorders) जिसमें क्रोमोसोम में बदलाव आ जाता है।
कुछ अनुवांशिक परीक्षण इस प्रकार हैं :-
- नैदानिक परीक्षण (diagnostic testing)
- प्रीसिम्पटोमैटिक और प्रेडिक्टिव टेस्टिंग (presymptomatic and predictive testing)
- कैरियर परीक्षण (carrier testing)
- फार्माकोजेनेटिक्स (pharmacogenetics)
- प्रसव पूर्व परीक्षण (prenatal testing)
- नवजात की स्क्रीनिंग (newborn screening)
- प्रीइम्प्लांटेशन टेस्टिंग (preimplantation testing)
प्रसवपूर्व अनुवांशिक जांच के प्रकार
Types of pre-pregnancy genetic screening in hindi
Garbh Dharan se pehle genetic test ke prakar in hindi
आमतौर पर दो तरह की अनुवांशिक जांच प्रक्रिया होती हैं :-
- जीनोटाइपिंग (genotyping) के माध्यम से किसी भी प्रकार के जीन उत्परिवर्तन (gene mutation) के लिए जांच की जाती है।
- अनुक्रमण (sequencing) की प्रक्रिया उस स्थिति में की जाती है जब माता-पिता में से एक भी साथी का अनुवांशिक परीक्षण सकारात्मक आता है।
यह जांच प्रक्रिया थोड़ी और व्यापक और विस्तृत होती है।
गर्भवती महिला के संदर्भ में दो प्रकार की जांच होती है :-
इस तरह की जांच भ्रूण (fetus) या प्लेसेंटा (placenta) की कोशिकाओं (cells) पर की जाती है।
यह अमीनोसेनेसिस (amniocentesis) या विल्लस सैंपलिंग (villus sampling - सीवीएस -CVS) द्वारा प्राप्त की जाती है :-
- प्रसवपूर्व स्क्रीनिंग (pre-delivery screening): इसके माध्यम से यह पता चल सकता है कि गर्भ में पल रहे शिशु को एन्यूपलोइडी (aneuploidy) या उससे मिलती जुलती कोई समस्या तो नहीं है।
- प्रसवपूर्व निदान जांच: इस जांच प्रक्रिया से यह पता चलता है कि गर्भ में पल रहे भ्रूण में असल में कोई वंशानुगत विकार है या नहीं।
गर्भावस्था की अलग-अलग तिमाही में विभिन्न प्रकार के परीक्षण किये जाते हैं :-
- प्रथम तिमाही में अल्ट्रासाउंड और एचसीजी स्तर नापने के लिए खून से संबंधित परीक्षण किये जाते हैं।
- दूसरी तिमाही में अल्फाफेटा प्रोटीन (alpha feta protein) और एचसीजी स्तर नापने के लिए खून से संबंधित परीक्षण, अल्ट्रासाउंड, ग्लूकोज (glucose) परीक्षण और ग्रुप बी स्ट्रेप कल्चर (group b strep culture) परीक्षण किये जाते हैं।
- तीसरी तिमाही में यूरिन (urine) कल्चर, खून परीक्षण, थाइरोइड (thyroid) परीक्षण, आरबीसी एंटीबाडी स्क्रीन (RBC antibody screen), शिशु के दिल की धड़कन का ध्यान रखना, अल्ट्रासाउंड, वीडीआरएल परीक्षण (VDRL test) एवं एचआईवी परीक्षण (HIV test) किये जाते हैं।
इसके अलावा गर्भावस्था के 18 और 20 सप्ताह के बीच डाउन सिंड्रोम (down syndrome), ट्राइसोमी 18 (trisomy 18) और तंत्रिका ट्यूब दोषों के लिए क्वाड टेस्ट स्क्रीनिंग (quad test screening) की जाती है।
कुछ सामान्य आनुवंशिक रोग
Some common genetic diseases in hindi
Kuch samanya genetic diseases
सिस्टिक फाइब्रोसिस (cystic fibrosis) एक अनुवांशिक विकार है जो गर्भ में पल रहे शिशु के फेफड़ों एवं पाचन तंत्र को गंभीर नुकसान पंहुचा सकता है।
इसके कारण बलगम, पसीना और पाचन संबंधित जूस गाढ़े हो जाते हैं जो किसी भी पैसेज को ब्लॉक कर सकते हैं।
सिकल सेल रोग (sickle cell disease) एक गंभीर रक्त विकार (blood abnormality) है जो प्रतिरक्षा प्रणाली (immunity system) को नुकसान पहुंचाता है जिसके चलते एनीमिया (anemia) की समस्या हो सकती है।
इसके साथ-साथ बच्चे में अन्य गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं को भी यह जन्म देता है।
फ्रैगाइल एक्स सिंड्रोम (Fragile X syndrome) एक अनुवांशिक बीमारी है जिससे बच्चे का विकास समय से नहीं होता है और शिशु में मानसिक विकलांगता या सीखने की कम क्षमता विकसित होती है।
कुछ अन्य अनुवांशिक रोग इस प्रकार हैं :-
- डाउन सिंड्रोम (Down syndrome)
इसमें 21 नंबर क्रोमोजोम में विकार होता है जिसकी वजह से शिशु के विकास पर असर पड़ता है। - डचेने मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (Duchenne muscular dystrophy)
इसमें मासपेशियों में कमज़ोरी आती है और यह लड़कियों में कम देखने को मिलती है। - हंटिंगटन डिजीज (Huntington disease)
यह आमतौर पर तीस साल की उम्र के बाद होता है और इसमें मस्तिष्क की तंत्रिकाएं (brain nerve cells) कमजोर होने लगती हैं। - हीमोफीलिया (Haemophilia)
इसमें खून के थक्के बनने की प्रणाली में विकार आ जाता है। - थैलसीमिया (Thalassemia)
इसमें लाल रक्त कोशिकाओं की मात्रा कम हो जाती है।
प्रसवपूर्व वंशानुगत परिक्षण और परिणाम
Pre-pregnancy genetic screening and results in hindi
Prasav se pehle karwaye gaye genetic test aur uske results in hindi
स्क्रीनिंग परीक्षण करवाने पर यदि एनीप्लोइडी (aneuploidy) के लिए सकारात्मक परिणाम आते हैं तो इसका अर्थ यह होता है कि सामान्य की तुलना में गर्भ में शिशु को किसी प्रकार के अनुवांशिक विकार होने का उच्च जोखिम है।
परन्तु इसका मतलब यह नहीं होता है कि भ्रूण में निश्चित रूप से ही किसी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या आएगी।
नैदानिक परीक्षण करवाना गर्भवती महिला के लिए एक विकल्प होता है हालांकि यह परीक्षण निश्चित परिणाम देता है।
इससे जुड़ी अधिक जानकारी डॉक्टर से ली जा सकती है।
इस तरह के परीक्षण करवाते समय यह ध्यान रखना अनिवार्य है कि अन्य परीक्षणों की तरह यह परीक्षण भी एक संभावना ही दिखाता है कि गर्भ में पल रहे शिशु को कितना ख़तरा हो सकता है जिसके अनुसार डॉक्टर आगे लिए जाने वाले क़दमों के बारे में सुझाव दे सकते हैं।
निष्कर्ष
Conclusionin hindi
Nishkarsh
हर माता पिता चाहते हैं कि उनका आने वाला बच्चा एकदम स्वस्थ हो जिसके लिए यह ज़रूरी है कि प्रसव से पहले ही हर तरह की सावधानी बरती जाए।
इन्हीं ध्यान रखी जाने वाली बातों में से एक हिस्सा है प्रसव से पहले अनुवांशिक विकारों की संभावना का पता लगाना जिसके लिए कई तरह के परीक्षण किये जाते हैं।
इन जांच प्रक्रियाओं के माध्यम से समय रहते ही आने वाले शिशु के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी मिल जाती है।
इससे यह साफ हो जाता है कि आने वाले भविष्य में बच्चे को कौन सी बीमारी प्रभावित कर सकती है।
लेकिन इन सभी जांच प्रक्रिया को आपसी सहमति, डॉक्टर की सलाह और अपनी सुविधानुसार ही करवाना चाहिए।
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आर्टिकल की आख़िरी अपडेट तिथि: : 29 Jun 2020
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